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सामाजिक न्याय अर्थात शोषणमुक्त समाज व कल्याणकारी राज्य का निर्माण


(विश्व सामाजिक न्याय दिवस विशेष - 20 फरवरी)



*डाॅ. प्रितम भि. गेडाम


पहले देश में जाति, धर्म, नस्ल, भाषा आदि के प्रति भेदभाव के कारण सामाजिक भेदभाव व्यापक था। अब असमानता को समाप्त करके पिछडो को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जा रही है और असमानता के कारण पीछे रह गए वर्गो को कुछ रियायतें देकर समानता का मौका दिया गया इसे सामाजिक न्याय कहा जा सकता है। सामाजिक न्याय की अवधारणा की कुंजी समाज में किसी भी जाति, धर्म, या वर्ग के किसी भी व्यक्ति के लिए भोजन, आश्रय, जिवनयापन की मूल बातें प्रदान करना है, ताकि सामाजिक और आर्थिक रूप से सुदृढो द्वारा कमजोर लोगों के शोषण को रोका जा सके, और आर्थिक शक्ति का विकेंद्रीकरण किया जा सके। उपेक्षितों को समान अवसर प्रदान करने के अलावा उन्हे सुरक्षा प्रदान करना भी आवश्यक है, तनाव और भय से कमजोर लोगों को राहत दे, यह मुख्य रूप से राज्य सरकार का काम है सामाजिक न्याय के मुख्य उद्देश्य राज्य के विभिन्न सामाजिक और आर्थिक स्तरों की बुनियादी जरूरतों को पुरा करना, उन्हें समान अवसर देना, उनमे उत्पन्न होने वाले संघर्षों को कम करना अथवा समाप्त करना और समाज में शांति सुव्यवस्था बनाना है।


भारत के संविधान में निहित सामाजिक न्याय की अवधारणा भी कल्याणकारी राज्य के लिए प्राथमिकता है, जिससे समाज का असंतुलन दूर हो सके। सामाजिक न्याय की इस व्यापक अवधारणा में निम्नलिखित घटक शामिल हैं जिसमें दलितों के सवाल शामिल हैं, उदाहरण के लिए- प्रतिनिधित्व, आरक्षण, अत्याचार, विषम व्यवहार आदि। आदिवासीयो के सवाल जैंसे- जंगल और जमीन के अधिकार, समाज की मुख्यधारा से जुड़ने की समस्या इत्यादि। महिलाओं के प्रति प्रश्न, जैसे- प्रतिनिधित्व, अनुचित व्यवहार, अनाचार, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, कार्यस्थल पर यौन शोषण, भ्रूणहत्या, दहेज, ऑनर किलिंग आदि। विकलांगों की समस्याओं, बुजुर्गों की समस्याओं, मानव तस्करी, बालश्रम, झुग्गी-झोपड़ी की समस्याओं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की समस्याओं के साथ-साथ स्वास्थ्य, कुपोषण की समस्याओं का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है।


विश्व सामाजिक न्याय दिवस 20 फरवरी को पूरे विश्व में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। 26 नवंबर, 2007 को संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाने हेतु घोषित किया और 2009 में पहली बार इस विशेष दिवस को मनाया गया। स्त्री-पुरुषों की समानता या लोगों और स्थलांतरीयो के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक न्याय के मूल्यों को संरक्षित किया है, जिसमें से सामाजिक न्याय को लिंग, आयु, जातीयता, धर्म, रंग, संस्कृति या परंपरा, दिव्यांग लोगों की बाधाओं को दूर करने के लिए सामाजिक न्याय संरक्षित किया जाता है। सरकार द्वारा समुदाय के विकास के लिए कई नीतियां लागू की जाती हैं, लेकिन जागरूकता की कमी और अन्य कारणों से, यह योजना लाभार्थियों या आम जनता तक नहीं पहुंच पाती है।


बढती आर्थिक असमानता


आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी, जो कि मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या है, यह भीषणतम साम्राज्य बुरी तरह से भारत में कायम है। इस विषय में क्रेडिट सुइसे नामक एजेंसी ने वैश्विक धन बंटवारे पर जो अपनी छठवीं रिपोर्ट प्रस्तुत की है, वह गौर करनेवाली है, रिपोर्ट बताती है कि सामाजिक-आर्थिक न्याय के लिए सरकारों द्वारा तमाम दावों के बावजूद भारत में आर्थिक गैर-बराबरी तेजी से बढ़ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2000-15 के बीच जो कुल राष्ट्रीय धन उत्पन्न हुआ उसका 81 प्रतिशत शीर्ष की दस प्रतिशत आबादी अर्थात विशेषाधिकारयुक्त वर्ग के पास गया। जाहिर है कि शेष 90 प्रतिशत जनता के हिस्से में 19 प्रतिशत धन आया। 19 प्रतिशत धन की मालिक 90 प्रतिशत आबादी में भी नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के हिस्से में 4.1 प्रतिशत धन आया है। आर्थिक न्याय के बिना हम सामाजिक न्याय की कल्पना भी नहीं कर सकते। यदि वास्तव में हम सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं तो हमें आर्थिक न्याय को मजबूत बनाना ही होगा। शैक्षिक असमानता के कारण ही हम समाज में वंचित, उपेक्षित वर्ग की महिलाओं को अच्छी शिक्षा दे पाने में असफल साबित हो रहे हैं। हम जानते हैं कि शिक्षा के बिना किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र का विकास हो ही नहीं सकता। शिक्षा ऐसी हो जो हमें सोचना सिखाए, कर्तव्य और अधिकार का बोध कराए, हमें हमारा हक दिलाये, समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार बनाए।


तमाशबीन बनती जनता


आज समाज के विभिन्न क्षेत्रो मे व्याप्त अराजकता हमे देखने को मिलती है जात-पात, उच-निच प्रेम-प्रसंग विरोध, कटुता के नाम पर सरे बाजार अत्याचार किया जाता है, लडकियो को जिंदा जलाया जाता है, एसिड फेंका जाता है, कमजोरो को मारा-पिटा जाता है, हथियार के बल पर अत्याचार किया जाता है और गुनहगार सबके सामने खुले आम गुनाह करते हुए दिखने पर भी जनता तमाशबीन बनकर देखती है और ये तमाशबीन लोग विडीयो, फोटो शुट करके सोशल मिडीया पर खुब वायरल करते है, ग्रामीण व पिछडे इलाको मे यह समस्या अती गंभीर नजर आती है अधिकतर पिडीत लोग तो डर व लोक लाज से अपराध तक दर्ज नही करवाते है और हिम्मत हार जाते है।


अमीर और गरीब के बीच बढती दूरी


अन्याय करनेवाले अपराधी के साथ अन्याय सहनेवाला व्यक्ती भी बराबर का अपराधी होता है। लोगों के जीवन में अक्सर सामाजिक अन्याय होते हुए देखने को मिलता है, लेकिन अधिकांश मानव अन्याय के विरूद्ध बात नहीं करते है या फिर कोई प्रतिक्रिया नही देते है। बहुत बार भय और अज्ञानता के कारण अन्याय का विरोध नहीं करते हैं घूट-घूट कर जिवन समाप्त कर देते है जबकि समाज में सभी को समानता का अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक मामलों के विभाग का कहना है कि वैश्विक स्तर पर अत्यधिक प्रयासों के बावजुद अमीर एंवम गरीब के बिच की खायी बढते ही जा रही है और यह कडवा सच है। गरीबी रेखा के निचे जिवनयापन करनेवाले गरीबों की संख्या दुनिया में बहुत बढ़ी है, क्योंकि विश्व स्तर पर श्रमिक वर्ग की संख्या लगातार बढ़ रही है। भले ही हमने शिक्षित होने के बाद बहुत प्रगति की है, लेकिन हमारे समाज में जातिगत समस्याएं हमेशा से मौजूद नजर आती हैं। कई जगहों पर एकदम छोटी-छोटी घटनाएँ गंभीर हिंसा और दंगे का रूप ले लेती हैं।


कई बार सार्वजनिक कार्यस्थलों में भ्रष्टाचार, पहचान और सिफारिश के बल पर काम किया जाता है ऐसा अक्सर अखबारो, खबरो से पता चलता है। आज के आधुनिक समय में, कई ग्रामीण क्षेत्रों मे शवों के लिए एंबुलेंस उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। दूर-दराज के गाँवो या पिछडे इलाको के गरीब असहाय मरीजों को अक्सर क्लिनिक जैसी आधारभूत सुविधा के लिए कई किलोमीटर तक जिंदगी और मौत के बिच जूझना पड़ता है तो कई बार छोटे-छोटे बच्चो को स्कुल जाने के लिए भी कई किलोमीटर पैदल जान जोखिम मे डालकर नदी-नालो को पार करके जाना पडता है कई स्थानों पर ग्रामीण क्षेत्रों की पंचायतों में विभिन्न कानून लागू होते हैं और वे वहां के नागरिकों पर जबरदस्ती लादे जाते हैं। बच्चे भूख से कृपोषित हो रहे, भुख-भुख करके मर रहे हैं, किसान कर्ज के बोझ से दब रहे हैं। लेकिन फिर भी पैसा ही लोगों का सर्वेसर्वा बना है। न्यायालय के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं, फिर भी हमारे समाज में गरीबों और अमीरों के साथ एक समान व्यवहार नहीं किया जाता है अक्सर पैसेवालो की आवभगत ही ज्यादा होती है।


सामाजिक न्याय के लिए जीवन समर्पित


सामाजिक अन्याय समाज के कई क्षेत्रों में बाधा उत्पन्न करता है। हमारा समाज वर्षों से समानता और न्याय के लिए प्रयास कर रहा है। देश के इतिहास में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में कई महान हस्तियां हुई जैसे- छत्रपती शिवाजी महाराज, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, राजर्षी शाहू महाराज, राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, एनी बेसेंट, मदर टेरेसा, विनोबा भावे, डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, बाबा आमटे जैसे असाधारण लोगों ने अपना पूरा जीवन सामाजिक न्याय के लिए समर्पित कर दिया है। महान विचारक बैरिस्टर नाथ ने लोकतंत्र के बारे में कहा है कि लोगों की पिड़ाएं, लोगों की खुशी, लोगों की आकांक्षाएं, लोगों के सपने यह सरकार के सपने हैं, लोगों की आशाएँ यह सरकार की आशाएँ हैं, जनता को ठोकर लगने पर जिस प्रशासन की आंख भर आये, वो सच्चा लोकतंत्र कहलायेगा। संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4), 17, 24, 25(2), 29(1), 164(1), 244, 257(1), 320(4), 330, 332, 334, 335, 338, 341, 342, 350, 371(ए)(बी)(सी)(इ)(एफ) के प्रावधानों के जरिये सामाजिक न्याय से सर्वाधिक वंचित समुदाय को राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक व सामाजिक संरक्षण प्रदान कर उनके विकास का मार्ग प्रशस्त करने का अनुकरणीय दृष्टांत कायम किया गया। यही नहीं, संविधान में अनुच्छेद 340 का जो प्रावधान किया वह परवर्तीकाल में पिछड़ों को भी सामाजिक अन्याय से उबारने में काफी कारगर साबित हुआ।


*डाॅ. प्रितम भि. गेडाम


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