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नर्मदा नदी से जुडी कथाएं व कहानी














नर्मदा जयंती क्यों मनाई जाती है?



*डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'


एक बार देवताओं ने अंधकासुर नाम के राक्षस का विनाश किया. उस समय उस राक्षस का वध करते हुए देवताओं ने बहुत से पाप भी किये. जिसके चलते देवता, भगवान् विष्णु और ब्रम्हा जी सभी, भगवान शिव के पास गए. उस समय भगवान शिव आराधना में लीन थे. देवताओं ने उनसे अनुरोध किया कि – “हे प्रभु राक्षसों का वध करने के दौरान हमसे बहुत पाप हुए है, हमें उन पापों का नाश करने के लिए कोई मार्ग बताइए”. तब भगवान् शिव ने अपनी आँखें खोली और उनकी भौए से एक प्रकाशमय बिंदु पृथ्वी पर अमरकंटक के मैखल पर्वत पर गिरा जिससे एक कन्या ने जन्म लिया. वह बहुत ही रूपवान थी, इसलिए भगवान विष्णु और देवताओं ने उसका नाम नर्मदा रखा. इस तरह भगवान शिव द्वारा नर्मदा नदी को पापों के धोने के लिए उत्पन्न किया गया.


इसके अलावा उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर नर्मदा ने कई सालों तक भगवान् शिव की आराधना की, भगवान् शिव उनकी आराधना से प्रसन्न हुए तभी माँ नर्मदा ने उनसे ऐसे वरदान प्राप्त किये, जो किसी और नदियों के पास नहीं है. वे वरदान यह थे कि –“ मेरा नाश किसी भी प्रकार की परिस्थिति में न हो चाहे प्रलय भी क्यों न आ जाये, मैं पृथ्वी पर एक मात्र ऐसी नदी रहूँ जो पापों का नाश करे, मेरा हर एक पत्थर बिना किसी प्राण प्रतिष्ठा के पूजा जाये, मेरे तट पर सभी देव और देवताओं का निवास रहे” आदि. इस कारण नर्मदा नदी का कभी विनाश नही हुआ, यह सभी के पापों को हरने वाली नदी है, इस नदी के पत्थरों को शिवलिंग के रूप में विराजमान किया जाता है, इसका बहुत अधिक मह्त्व है और इसके तट पर देवताओं का निवास होने से कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से ही पापों का विनाश हो जाता है।


नर्मदा नदी के उदगम से जुडी कथाएं व कहानी


इन सभी वरदानों के कारण माँ नर्मदा को हिन्दू धर्म में बहुत पूजा जाता है. वैसे इसके जन्म की और भी कथायें हैं.


कथा 1: एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक बार भगवान् शिव (ब्रम्हांड के विनाशक), घोर आराधना में लीन थे, जिससे उनके शरीर से पसीना निकलने लगा, वह एक नदी के रूप में बहने लगा और वही नदी नर्मदा बनी.
कथा 2: एक बार ब्रम्हा जी (ब्रम्हांड के निर्माता) किसी बात से दुखी थे, तभी उनके आंसुओं की 2 बूँद गिरी, जिससे 2 नदियों का जन्म हुआ, एक नर्मदा और दूसरी सोन. इसके अलावा नर्मदा पुराण में इनके रेवा कहे जाने के बारे में भी बताया गया है।



*डॉ. अर्पण जैन 'अविचल', इंदौर














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