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तुम्हारी प्रतीक्षा में




कविता संग्रह 'तुम्हारी प्रतीक्षा में' राजीव मणि की पहली कविता संग्रह है। यह संग्रह सन् 2018 में बिहार सरकार के मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग के अंशानुदान से प्रकाशित हुई है, जिसमें उनकी कुल 38 कविताएँ संगृहीत हैं। मूलतः पटना बिहार के राजीव मणि जी की ख्याति पेशे से पत्रकार और एक लेखक के रूप में हैं परन्तु 'तुम्हारी प्रतीक्षा में' कविता संग्रह की कविताओं से गुजरते हुए अनुभूति हुई कि वे एक सजग सहृदय कवि भी हैं, जो अपनी कविताओं में समय की सच को पूरी ईमानदारी के साथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। समीक्षित कविता संग्रह 'तुम्हारी प्रतीक्षा में' की 38 कविताएं उस गुलदस्ते की भाँति हैं, जिसमें 38 प्रकार के पुष्प पिरोये गए हैं। संग्रह की हर कविता अपने आप में बेजोड़ है, जिसके माध्यम से कवि हर बार जीवन एक अलग ही रंग लेकर पाठकों से मुखातिब होते हैं। इन्हें पढ़कर सहृदय पाठक कुछ पल के लिए गहरी सोच में पढ़ जाते हैं।
पुस्तक की भाषा सहज, सरल एवं सरस है। सामाजिक सरोकार को जीकर लिखी गई राजीव जी की कविताएँ मनोविज्ञान की जानकारी पाठकों के समक्ष परोसती हैं। संग्रह की पहली कविता 'जीवन का गणित' में उन्होंने कुछ ही पंक्तियों में आज के मानव की जीवन-यथार्थ को पाठकों के समक्ष खोल कर रख दिया है :-
वृद्धाश्रम में / खाट पर लेटे हुए / वह अपनी जिन्दगी का
जोड़, घटाव, गुणा, भाग / लगा रहा था / कितना कमाया
कितना खर्च किया / तो फिर क्यों नहीं / कुछ बचा शेष
ना परिवार / ना समाज / ना रिश्ते / क्या सभी खर्च कर डाले ?
इसी प्रकार 'परिणाम' शीर्षक कविता में उन्होंने मनुष्य की संतान के सुखमय भविष्य के मोह में मनुष्य की संचय की प्रवृति का अंतिम हस्र कुछ यूँ बताया है :-
जीवन भर वह / एक-एक जोड़ कर
बनाता रहा / सैकड़ा, हजार, लाख, करोड़....
और खाता रहा / सत्तू - नमक - प्याज
और इस जोड़ का परिणाम / वह खुद ही खर्च हो गया !
अब उसकी संतान / एक - एक कर उड़ा रही / सैकड़ा, हजार लाख....
कवि पेशे से पत्रकार हैं। इसकी झलक उनकी कविताओं में सहज ही दिख जाती है। उनकी दृष्टि बहु-आयामी है। जीवन के कटु यथार्थ से उन्हें लिखने के लिए अनेक विषय मिलते हैं। जब भारत में 1000 और 500 रुपए के नोटों का प्रचलन बंद किया गया तो पत्रकार से कवि बने राजीव जी ने एक बेहतरीन कविता लिखी- 'नोटबंदी'। इसकी कुछ पंक्तियाँ देखिये-
अच्छा, अब हम चलते हैं / बहुत निभाया तुमने / इन्सान होने का फर्ज
जब तक हम चलन में थे / अपनी जान से भी ज्यादा चाहा
*** *** ***
और नोटबंदी की खबर सुनते ही / एक ही पल में
उठा फेंका हमें / नदी नालों में
*** *** ***
----और अब कहते हो / कालाधन और आतंकवाद के खिलाफ
सर्जिकल स्ट्राइक है यह !
*** *** ***
लेकिन जाते जाते / हम कहे जाते हैं / हम नोटों को बदलने से अच्छा है
पहले खुद को बदलो / भ्रष्टाचार और बेइमानी के
पालने में यूँ ही सोते रहोगे / तो हर एक चीज खोते रहोगे।
राजीव जी की कविताओं में जहाँ समय की आवाज है वहीं उनकी प्रेम से पगी प्रेम कवितायें
तुम्हारा यह पगला, तुम्हारी प्रतीक्षा में, पश्चाताप, वह लड़की, परछाई, आज वचन दो, पाठकों को मंत्रमुग्ध करती हैं। भावों के अनूठेपन की अभिव्यक्ति का उनका अपना दिलचस्प अंदाज है। संग्रह की शीर्षक कविता 'तुम्हारी प्रतीक्षा में' में उन्होंने क्या खूब लिखा है :-
तुम्हारा हर प्रेमपत्र / पत्रिका का एक संग्रहणीय अंक की तरह है
यह सोचकर / मैं इसे दिल–रूपी डायरी में / नोट कर लेता था
कभी मिलो / तो मैं तुम्हें बताऊँ / कि इन प्रेमपत्रों का विशेषांक
कैसे मेरे दिल के छापाखाना से / छापकर तैयार रखा है
तुम्हारी प्रतीक्षा में / तुम्हारे ही हाथों विमोचन के लिए।
संग्रह की कविताओं में विषय की विविधता है साथ ही तदानुसार भावाभिव्यक्ति की भी। राजीव जी अपनी कविता 'हे माली' में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की 'पुष्प की अभिलाषा' की भाँति माली से अपनी अभिलाषा प्रकट करने की बात करते हैं :-
हे माली ! / तुम कैसे हो जो / तुम्हें नहीं कोई चाह
दिनभर बगिया में जुतते हो / पर भरते नहीं आह
*** *** ***
हे माली ! तुम खुद को पहचानो
सिर्फ कर्तव्य ही नहीं / अधिकार भी जानो
*** *** ***
अब मत रखो किसी से झूठी आशा
उठो, पूर्ण करो अभिलाषा।
किसी विद्वान ने क्या खूब लिखा है कि शब्द रत्न होते हैं, मोती होते हैं, हीरे, पन्ना, माणिक होते हैं। इनकी कीमत वक्त के साथ बढ़ती है। कम नहीं होती। शब्दों में ही वह ताकत होती है कि वे किस्मत के सितारे बदल देते हैं रत्नों की मानिंद। राजीव मणि साहित्य की दुनिया के चिरपरिचित हस्ताक्षर हैं। भाषा एवम् साहित्य के विद्यार्थी, पत्रकार और साहित्यकार शब्दों के कुशल खिलाड़ी होते हैं। संयोगवश राजीव मणि में ये तीनों गुण मौजूद हैं। नतीजा, उनकी कविताओं के शब्द चयन में स्पष्टतः दिखता है, जो विरले रचनाकारों की रचना में देखने को मिलते हैं। उनकी एक कविता 'मैं नोट हूँ' की एक झलक देखिये :-
मैं ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश / मैं ही हूँ गणेश
मैं ही दुर्गा, लक्ष्मी, काली / मैं ही कलकत्ते वाली
मैं ही काया, मैं ही माया / मैं ही मान-सम्मान
मैं ही लोकतंत्र का वोट हूँ / हाँ, मैं नोट हूँ।
*** *** ***
मेरे बिना आत्महत्या कर रहा किसान / मैं ही अमीरों के शरीर पर
टंगा गरमी का कोट हूँ / हाँ, मैं नोट हूँ।
माँ शब्द में कितनी मिठास है। संभवतः यही कारण है कि यह साहित्यकारों का सर्वप्रिय विषय रहा है। किसी विद्वान ने क्या खूब लिखा है, “जिसने माँ पर नहीं लिखा, उसने कुछ नहीं लिखा और माँ पर जितना भी लिखा गया, कम ही लगा।” राजीव जी भी अपवाद नहीं। उन्होंने अपनी कविता 'माँ का सवाल में' खूबसूरत अभिव्यक्ति की है :-
“बेटा बहुरिया कब लाएगा / चार साल से पूछ रही
मेरे जीवन का अब क्या है / अब तो जीवन ही कुछ रही।
इस संग्रह में उनकी माँ पर आधारित अन्य कविताएँ 'माँ, तेरी बहुत याद आती' और 'ज़रा बताना तो अम्मा' के साथ ही मेरे बाबा बहुत ही भावपूर्ण हैं। 'अजन्मे बिटिया के नाम' और 'सबला' शीर्षक कविता में जहाँ उन्होंने देश की वर्तमान परिस्थितियों में नारी की समस्याओं को मर्मस्पर्शी तरीके से प्रस्तुत किया है वहीं हमें चैन से रहने दो, बिन पानी सब सून, बरगद का पेड़ में पर्यावरण संरक्षण की बात भी की है। संग्रह के उत्तरार्ध में राजीव जी की कई व्यंग्य कविताएँ और क्षणिकाएँ भी शामिल हैं, जो
पाठकों को खूब गुद्गुदाती हैं। कविता बीमा की ये पंक्तियाँ देखिए :-
रोज–रोज उनके घर जाने को / कराना पडा मुझे बीमा
बात थी सिर्फ इतनी / उनकी जवान बेटी सीमा।
अपनी बात खूबसूरत अंदाज में पेश करने में राजीव जी सिद्धहस्त कवि हैं। राजीव जी ने बहुमूल्य की क्या खूब परिभाषा दी है :-
'जो बहू / मूल्य लेकर आवे
होती है बहुमूल्य।'
गूढ़ मंतव्य से लबरेज यह कविता सामाजिक यथार्थ को प्रकट करता है। उनकी व्यंग्य कविताओं और क्षणिकाओं में मुख्य रूप से वर्तमान सामाजिक एवं राजनीतिक विसंगतियों पर तीक्ष्ण प्रहार किया गया है। संग्रह की कविताओं में मानवीय अनुभवों और उनके सूक्ष्मतम निहितार्थों के साथ-साथ मानव और प्राकृतिक दुनिया के अलग-अलग पड़ावों के मार्मिक अनुभवों-प्रसंगों को उभारने वाले बिंब भी हैं। मानवीय सरोकारों के निरंतर फैलते हुए क्षितिज को रेखांकित करती हुई सुन्दर बिंब और प्रतीक योजना राजीव जी की कविताओं की एक दुर्लभ विशेषता बन गयी है। कविताओं में निहित प्रश्नाकुलता, संवादधर्मिता, आश्चर्य-विस्मय और व्यंग्य की खूबियां उन्हें बार-बार पढ़ने और सोचने पर मजबूर करती हैं। 


राजीव मणि जी अपने प्रथम कविता संग्रह की कविताओं में जिस तरह रिश्तों  और मानवीय संबंधों की कड़ी पड़ताल करते हैं, वह हैरानीभरा है। इन कविताओं में मुख्यत:  आधुनिक जीवन में बदलते रिश्तों और संवेदनाओं को पकड़ने की भरपूर कोशिश गई है। यह कविता संग्रह निश्चय ही पठनीय है और विचारणीय भी। सभी कविताएं मन का बहुत स्नेह से स्पर्श करती हैं और फिर पढ़ने वाले को अपना बना लेती हैं। पढ़ने वाला प्रसन्न हो जाता है। उसे प्रसन्नता इस  बात की भी होती है कि उसके कीमती समय की कीमत कुछ बेशकीमती कविताओं के साथ संपन्न हुई। सबसे खास बात इस कविता संग्रह की यह है कि इसमें हर तरह की कविताएं हैं। इसलिए हमें पूरा विश्वास है कि ये कवितायें पाठकों को पसंद आएँगी।


काव्य संग्रह - तुम्हारी प्रतीक्षा में
कवि - राजीव मणि
प्रकाशक - शेखर प्रेस, पटना
प्रकाशन वर्ष - 2018
संस्करण - प्रथम
पृष्ठ - 96
मूल्य - 200



समीक्षक- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
प्रबंधक (प्रशासन विद्योचित ग्रंथालय)
छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम, रायपुर
छ.ग. माध्यमिक शिक्षा मंडल परिसर, पेंशनबाड़ा, रायपुर
पिन 492001 मोबाइल न. 9827914888, 9109131207



 

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