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कबीरा खड़ा बाज़ार में



*अनुजीत इकबाल*


“कबीर” नाम ही इतना व्यापक है कि इसके समकक्ष केवल एक शब्द आता है, जिसे “तत्वदर्शी” कहते हैं।कबीर की चौखट पर ही, आत्मा और परमात्मा में संगम का बोध होता है।


उस रात, बंद दरवाजे के पीछे से ट्रेन की आवाज मेरे कानों में पड़ने लगी। दरवाजा खोला तो चारों तरफ अंधेरा ही था, सन्नाटे की आहट वैसे ही सुन पड़ रही थी जैसे लंबी दूरी से आती घोड़े के चलने की आवाज।


देर रात तक नींद न आने पर कबीर को लेकर कुछ ढूंढ़ने बैठ गई थी। अपनी छोटी सी वॉल लाइब्रेरी की कई किताबें देखती रही, गूगल से लेकर यू-ट्यूब तक मैं कबीर को ढूंढ रही थी। पता नहीं क्या, पर जैसे लग रहा था कि मिलते ही परम सत्य के साथ साक्षात्कार हो जाएगा। ये कैसा द्वंद था मन का।


फिर जो मिला, उसके सहारे कबीर से एक तरह की अलग ही पहचान हुई । मध्य रात्रि से सुबह कब हो गई पता ही नहीं चला।कबीर उस रूप में सामने प्रस्तुत हो रहे थे जिस रूप को शायद मैंने अब तक कभी न देखा या सोचा था। कितनी प्यारी खोज है यह कबीर यात्रा नाम की, जो राजस्थान में प्रति वर्ष होती है। यूट्यूब पर ही इसके बारे में पता चला था।


कबीर को मैं डेढ़ साल से प्रह्लाद सिंह टिपणियां जी के मालवा संगीत में खोज रही थी। आगे आगे रास्ते खुलते गए और कबीर यात्रा का पता चला। जितना अधिक मैं इसके बारे में जानती गई उतना ही यह सब दिलचस्प लगा। इसलिए सहज ही यात्रा और इस से जुड़े लोगों के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ गई। सर्वप्रथम, मुझे शबनम विरमानी जी का पता चला, जो बैंगलोर से हैं। कबीर को जानने की उनकी उत्सुकता उनको बनारस से मगहर, फिर अयोध्या से पाकिस्तान और अंततः अमरीका ले गई। कबीरा खड़ा बाजार में,हद अनहद नाम की डॉक्युमेंट्री इन्होंने कबीर की खोज को समर्पित की।
वापस आती हूं, कबीर यात्रा पर। सदा से एक आम यह धारणा रही है कि कला और संगीत किसी खास वर्ग के लोगों का शौक है,
लेकिन राजस्थान कबीर यात्रा, इस भ्रांति को तोड़ती प्रतीत होती है। इसमें आम स्थानीय लोग और अलग अलग शहर से आये युवा वर्ग के लोग एवं नए प्रयोगधर्मी कलाकार शामिल होते हैं।


पर जब उनके बारे में ओशो से सुना उसके बाद टिपणियां जी को ज़रा हल्के गाड़ी हांको गाते सुन लिया था। बस, उस दिन से, जीवन कबीर के रंग में रंगना शुरू हो गया। ओशो कहते हैं कि भारत में तीन जीनियस पैदा हुए, कृष्ण, बुद्ध और कबीर। इन तीनों के जीवन को पढ़-सुन कर समझ आता है कि क्यों ओशो ने ऐसा कहा होगा। कबीर की चेतना की विशेषता यही है कि यह समाज से जुड़ी हुई है। बहुत ही सीधे और सरल रहे होंगे। उनकी सरलता बाद में उन की मुखरता के रूप में स्थान्तरित हो गई, क्योंकि जो सरल होता है वही बेबाक होता है। अद्वैतवाद और रहस्यवाद से प्रभावित हो इन्होनें सिद्धों तथा नाथ योगियों की योग साधना तथा हठ योग ग्रहण कर सार को पा लिया।


बचपन में पिता श्री कबीर के बारे में बताते थे, क्योंकि उनकी वाणी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में है। तब उतना कुछ समझ नहीं आता था। ऐसा लगता था कबीर अपनी भाषा के कारण मुझ से जुड़ नहीं पा रहे, क्योंकि पंजाबी बोलना और गुरमुखि समझना अलग अलग बातें हैं पर राजस्थान कबीर यात्रा एक तरह से उसी जुड़ाव की कहानी भी है।


संगीत का आविर्भाव सदैव ही उन्मुक्त हवाओं में होता आया है। हर प्रकार का सृजन प्रकृति की गोद में ही संभव है। इसलिए संगीत का आनंद खुले आसमान के नीचे बढ़ जाता है। राजस्थान कबीर यात्रा कहीं किसी ऑडोटोरियम में नहीं बल्कि राजस्थान की ठंडी रेत पर होती है। लोग आते हैं, नाचते हैं, गाते हैं।


देश-भर से इस यात्रा में 400 से अधिक लोग शामिल होते है, अलग-अलग गांवों के स्थानीय लोग आते हैं। पर, सब कुछ व्यवस्थित रूप से पूर्ण हो जाता है।


कबीर को जीने वाले ऐसे ही होते होंगे। आज कल संगीत के नाम पर शोर शराबा और फूहड़ता ही देखने को मिलती है। नेहा कक्कड़ के गानों से लेकर हनी सिंह के अश्लील गानों पर युवा पीढ़ी मदमस्त होकर नाचती है पर मैं अपने अनुभव से मैं
कहूंगी कि राजस्थान कबीर यात्रा के सामने यह आधुनिक संगीत कुछ भी नहीं है। टिपणियां जी से लेकर शबनम विरमानी और स्थानीय राजस्थानी कलाकार जो दिव्य माहौल बना देते हैं वो शब्दों में बखान करना असंभव है।


प्रह्लाद सिंह टिपणियां का नाम शायद आप में से कम लोग जानते होंगे। कबीर के निर्गुणी भजन जिस प्रेम और भाव से वो गाते हैं शायद ही कोई दूसरा मिले। तंबूरा, खड़ताल, मंजीरा, ढोलक और टिमकी से ऐसा समय बंधता है कि कभी कभी लगता है स्वयं कबीर बनारस के घाट पर गा रहे हैं। यूट्यूब पर उनको सुनिए, कबीर को गाते हुए सकल हंस में राम विराजे; मेरे लिए एक अच्छी बात यह है कि मेरी छह साल की बेटी टिपणियां और शबनम जी को गुनगुनाती है और कबीर को जानती है। काश, हर शहर में इस प्रकार की यात्राएं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता जैसा राजस्थान की धरती पर हो रहा है और युवा पीढ़ी अपनी अमीर विरासत पर गर्व महसूस करती।


बाकी फिर कभी......


*अनुजीत इकबाल लखनऊ, उत्तर प्रदेश


 





















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