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विकास के कुछ आयाम जो कितने हानिकारक हैं (लेख)






 


*डॉ अरविन्द जैन*
मनुष्य का स्वाभाव हैं विकास करना ,जन्म से लेकर मृत्यु तक वह विकास की दौड़ में लगा रहता हैं .जन्म के समय 7 पौंड से होकर किलोग्राम तक पहुंचना ही विकास हैं .जन्म के समय फूटी कौड़ी नहीं रहती और वह अपनी युवावस्था में  शून्य से कितना धन पैसा पद प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेता हैं और फिर वह परिवार समाज में भी स्थापित होता हैं .उसके इस परिश्रम में उसका पुरुषार्थ के साथ पुण्य पाप का भी ठाठ रहता हैं .बिना पुण्य के कुछ भी नहीं मिल सकता .
वर्ष 1970 के दशक में जब देश में हरित क्रांति काउदय हुआ तो पैदावार बढ़ाने के लिए हमने अमेरिका से तकनिकी ली जो अमेरिका में बंद हो चुकी थी यानी रसायनों का प्रयोग उन्होंने बंद किया और भारत नहीं इंडिया ने उनके बहिष्कृत उत्पादों को स्वीकार किया उससे हमारे देश में कृषि उत्पादन बढ़ा ,खूब बढ़ा और उसे नयी नयी तकनिकी और बीजों से देश धन्य धान्य से परिपूर्ण हुआ.. उसके बाद इतना उत्पादन हुआ की उसके रख रखाव पर भी गोदामें बनवानी पडी और कभी कभी तो उत्पादन बरसात के पानी में सड़ गया .उसके बाद जमीन की उर्वरा शक्ति घटना शुरू हुई और नए नए रसायनों  का उपयोग बढ़ा और उसके बाद रसायनजनित बीमारियों के घेरना शुरू किया .आज स्थिति हैं हैं की भारत का प्रत्येक नागरिक विषैले रसायनों के कारण हृदय रोग कैंसर ,मधुमेह जैसे गंभीर बीमारियों से ग्रसित होने के कारण उसका पैसा इलाज़ में खरच हो रहा हैं और कैंसर जैसी बिमारियों के कारण आबादी नियंत्रण में योगदान दे रहा हैं .अमेरिका आदि देशों के प्रतिबंधित उत्पादों को इंडिया में पूरी तरह से उपयोग करने की छूट हैं और बीमारियों का इलाज़ भी उनके द्वारा इज़ाद महंगे रसायनों से होता हैं .वर्त्तमान में इंडिया की नस्ल रुग्ण पैदा हो रही हैं और उसके जन्म से ही इलाज़ का खरच होने से आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता हैं .
आज कल विश्व एक गांव जैसा होता जा रहा हैं कोई भी जानकारी. फैशन ,तकीनीकी ,खान पान किसी से नहीं छुपा हैं इस अंधी  दौड़ के कारण ,पूरा विश्व दीवाना बनकर भाग रहा हैं .जैसा सड़क पर एक जानवर कभी भी शांत नहीं रहता हैं ,दिन भर यहाँ वहां भागता रहता हैं ऐसी ही कमोबेश हालत हमारी भी हो गयी हैं ,इसके कारण शारीरिक मानसिक रोग बहुत बढ़ गए .आजकल मानसिक रोगियों की संख्या शारीरिक रोगियों से अधिक हैं .आजकल अनिद्रा ,तनाव अवसाद ,घबराहट आदि रोगों के कारण शराब ,कबाव शबाव और निद्रा जन्य औषधियों का लेना आदी    हो गया हैं .आज लगभग ७०% नागरिक इस कारण से दवाओं पर जिन्दा हैं .
विगत चार पांच वर्षों में सरकार की नीतियों के कारण व्यापारी वर्ग ,भवननिर्माता ,आदि बहुत अधिक परेशान होने से आत्महत्या भी का रहें हैं और व्याज का बोझ बढ़ने से तनाव ग्रस्त हैं .इस समय होटल्स ,हॉस्पिटल्स मोबाइल्स आदि का व्यापार भरपूर तेज़ी पर हैं .मोबाइल के कारण एक तरफ नए नए अपराध इज़ाद हो रहे तो दूसरी तरफ इसकी लत के कारण वह एकाकी होने से अवसादी होता जा रहा हैं .नौकरी न होने से अपराध के अलावा अन्य विसंगतियां बढ़ गयी .व्यभिचार आज सदाचार में आ गया ..




एक तरफ सरकार और नागरिक भवन निर्माण में संलंग हैं उसमे लगने वाली रेत के लिए नदियों का दोहन किया जाता हैं और न निर्माण हो तो विकास असंभव .हर तरफ सरकार की नीतियों कविरोध का कारण दूरदर्शिता का अभाव.जैसे भोपाल में बी आर टी इस का निर्माण जनता के साथ धोखा हैं .पुरानी सरकार के जाने के बाद नयी सरकार के नगरीय मंत्री बड़े बेताव थे की यह गलत बना पर मामला ठन्डे बास्ते में चला गया ऐसा क्यों ?
मध्य प्रदेश सरकार जिसे मन पसंद सरकार कहना अच्छा लगता हैं एक तरफ गौशालाएं खोलने की घोषणा की जो बन नहीं पा रही और दूसरी और मांस चिकिन और दूध का वितरण एक ही स्थान से .कड़कनाथ के अंडे घरो घरो भेज रही और दूसरी और अध्यात्म संगोष्ठी और गाँधी जयंती मिंटो हाल में मनाया गया जिसकी छत पर शराब कबाव परोसी जाती हैं ाअंडा को शाकाहार के रूप में प्रचारित करके उसे स्कूलों  में बांटने की पहल की जा रही हैं .अब तो मंदिरों में सरकारी पंडितों की नियुक्ति के बाद अण्डों का वितरण प्रसाद के रूप में किया जायेगा .अब जंगलों के पास सरकारी होटल्स , फार्म, हाउसेस रिसॉर्ट्स खोले जायेंगे जिसमे बार की सुविधा रहेंगी ,उसके बाद मांसाहार के बाद शबाव की सुविधाएँ अपने आप बन जाएँगी ,क्या यही हैं हमारा विकास .
शिक्षा स्वास्थ्य सड़क बिजली पानी की कोई प्राथमिकता नहीं ,नैतिक, चारित्रिक ,धार्मिक  सामाजिक, सरोकारों का कोई स्थान नहीं मात्र भाषणों में हैं जो अब नेताओं मंत्रियों सचिवों ,धर्माचार्यों के मुख से शोभा नहीं देता .सरकार अपनी आर्थिक उन्नति के लिए मांस .मछली .शराब अण्डों का उत्पादन ,वितरण और प्रोत्साहन दे रही हैं जो मुखिया और उनके मंत्रियों की नियत और मानसिकता बताती हैं ..
बहुत हो चूका विकास नेताओं मंत्री सचिवों धनपतियों का
इनके विकास ने हमें विनाश की कगार पर पहुंचा दिया हैं
क्या विषकन्यायों का दंश नहीं सम्हाल पा रहे
क्यों नहीं नाम उजागर कर पा  रहे हैं
लगता हैं की जलेबी शीरा पी रही हैं
क्योकि हमाम में सब नंगे नजर आ रहे हैं
सब घिरे हैं जाल में इसीलिए सब बच जायेंगे
कुछ होते तो निगल जाती सरकार उनको
कोई बात नहीं आज नहीं तो कल होगा जरूर
सुबह जरूर आएँगी ,सुबह का इंतज़ार कर



 *डॉ अरविन्द प्रेमचंद जैन, संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104  पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड ,भोपाल  मो09425006753 







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