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तो चलूँ (कविता)











*सोनल पंजवानी*
वक़्त के पाँव पे घुँघरू बांध कर
उसकी आहट को थाम लूँ तो चलूँ।
अपने जीवन के हर पहलू को
तेरी आँखों से देख लूँ तो चलूँ।

गुज़रती शाम का रंगीन तराना
तेरे होठों पे सजा लूँ तो चलूँ।
इन रंगीन फ़ज़ाओं को
अपने दामन से बाँध लूँ तो चलूँ।

इतना पी कर जो उठ के मैखाने से
कोई खुश हो के जाये तो चलूँ

कोई बंदिश नहीं ज़माने की
तुमको खुद ही ने रोक रखा है
अपने रोके से भी पलट कर तुम
साथ आना चाहो तो चलूँ।

*सोनल पंजवानी,इंदौर,मो 9755544422











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