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श्रम शक्ति का महत्व महात्मा गांधी ने संपूर्ण विश्व को बताया है






डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' स्मृति सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान माला के समापन दिवस पर न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ता  का व्याख्यान

डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' की प्रतिमा का हुआ अनावरण



उज्जैन। (डॉ गिरीश पंड्या) आज समुचा विश्व महात्मा गांधी के आदेशों को स्वीकार कर रहा है। महात्मा गांधी के दर्शन में वर्तमान की सभी समस्याओं का निदान सम्मिलित है। सत्य, अहिंसा और प्रेम रूपी तीन सिद्धांत महात्मा गांधी ने राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक क्षेत्र में अपनाये और इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर देश को आजाद करवाया। गांधी ने ही हमें बताया कि श्रम शक्ति का महत्व हम सभी को स्वीकार करना चाहिए। जो श्रम नहीं करता है उसे भोजन ग्रहण करने का अधिकार भी नहीं होना चाहिए। महात्मा गांधी धार्मिक थे किन्तु उनका धर्म मानवीय मूल्यों, मनुष्यता, नैतिकता और समाज सेवा पर आधारित था। उक्त विचार मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर के न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ताजी ने भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित कवि कुलगुरू डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' स्मृति सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान माला के समापन दिवस पर 'धर्म एवं मानवतावाद पर गांधीजी के विचार' विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ता जी ने कहा कि महात्मा गांधी ने सभी धर्मां का अध्ययन किया था और सभी धर्मा के सार को अपनाते हुये नैतिक मूल्यों को महत्व देते हुए स्वाधीनता आन्दोलनों को गति प्रदान करी। यदि हम गांधी के सपनों का भारत बनाना चाहते है तो यह आवश्यक है कि राजनीति ऐसे लोगों द्वारा की जाये जिनका आचरण नैतिक हो। यदि यह संभव होता है तो ही लोकतंत्र मजबुत होगा और मानव कल्याण के कार्य निरंतर हो सकेंगे। न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ता ने समाज में सद्भावना कायम करने की दिशा में किये गए उल्लेखनीय प्रयासों के लिए श्रीकृष्ण मंगलसिंह कुलश्रेष्ठ को 'मालवा के गांधी' से सम्बोधित किया।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति ख्यात संस्कृतविद् डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने 'वैष्णवजन-महात्मागांधी' विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रसिद्ध भजन वैष्णवजन के प्रत्येक शब्द से गांधी का सम्पूर्ण जीवन प्रभावित रहा है। यह भजन दूसरों की पीड़ा को जानने की बात करता है। यही कारण है कि परपीड़ा को जानने के लिए महात्मा गांधी ने सिर्फ एक वस्त्र में रहने का संकल्प लिया ताकि वह अभाव में रहने वाले लोगों की पीड़ा को जान सके। यह भजन परोपकार और परनिंदा की बात न करने का संदेश देता है। महात्मा गांधी के जीवन में भी यही प्रतिफलित हुआ है। समस्त प्राणियों में ईश्वर के दर्शन की बात इस भजन में समाहित है और ऐसा ही गांधीजी ने अपने जीवन में फलीभूत किया है।

समारोह के आरंभ में अतिथियों न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ता एवं विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बालकृष्ण शर्मा द्वारा कवि कुलगुरू डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन'  की प्रतिमा का अनावरण भारतीय ज्ञानपीठ परिसर में किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया ने डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला।

स्वागत उद्बोधन संस्था अध्यक्ष श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया। व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्था की छात्राओं ने सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत एड्व्होकेट्स श्री योगेश व्यास, श्री चन्द्रप्रकाश चौरड़िया, श्री हरदयाल सिंह ठाकुर, श्री दिनेश पण्ड्या, श्री सुरेश शर्मा, श्री रवि राय एवं श्री रणवीर सिंह कुशवाह ने किया।

इस अवसर पर वक्ताओं का शाल और श्रीफल से सम्मान किया गया। समारोह का संचालन वरिष्ठ अभिभाषक श्री कैलाश विजयवर्गीय ने किया।







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