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साहित्य का हमारे जीवन पर प्रभाव (लेख)











*रश्मि एम मोयदे*


आज यह विषय  विचारणीय है।साहित्य का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है,जिस प्रकार अच्छे व पौष्टिक आहार से हम सेहतमंद होते हैं, वही अस्वच्छ और  अपौष्टिक आहार कई बिमारियों को जन्म देता है।कहते हैं ना जैसा खाये अन्न,वैसा होये मन।ठीक उसी तरह किताबें  भी हमारे जीवन को प्रभावित करती है।जिस तरह की किताबे हम पढ़ते है,उसी तरफ हमारा मन भागता है और उस जैसा बनने की हमारी इच्छा होती है फिर हमारे विचार भी वैसे ही बनने लगते हैं, विचारों के अनुरूप हम कार्य करने लगते हैं और हमारे कार्य ही से ही हमारे चरित्र का निर्माण होता है, यही चरित्र हमारे भाग्य का द्वार खोलता है।


 हमारे जीवन पर साहित्य का अलग अलग प्रभाव पड़ता है जैसे धार्मिक ग्रंथो से  हमें आध्यात्म का ज्ञान मिलता है, साहित्यिक से साहित्य सृजन होता है, इतिहासिक,  भौगोलिक, वैज्ञानिक आदि किताबे पढ़ने का अलग अलग असर होता है।


50, 60 साल पहले हमारे घरों में रोज रामायण, गीता आदि धार्मिक ग्रंथो को पढ़ने, सूनने का रिवाज था, उस वक्त के बच्चे ज्यादा  संस्कारी होते थे,  संयुक्त परिवार में छोटे-छोटे बच्चों को मां, दादा-दादी, नाना-नानी रोज रात में अच्छी अच्छी शिक्षाप्रद कहानियां नियमित सुनाया करते थे, बच्चे जैसा सुनते है, देखते है वैसा ही करते हैं।


इतिहास गवाह है, वीर शिवाजी की मां जीजाबाई ने बचपन से उन्हे वीरो की कहानियां सुनाकर अपने बेटे को एक महावीर योध्दा बनाया था।


पहले सुविधाएं कम थी लेकिन फिर भी लोगाें में शिक्षा और ज्ञान भरपूर मात्रा में होता था।


आजकल सुविधाएं भरपूर है लेकिन ज्ञान व संस्कार की कमी है क्योकि सुविधाओं का सही उपयोग नही हो रहा है।


बच्चे मोबाइल और T.V. पर कार्टून और गेम अधिक देखते हैं, वैसे भी T. V. सीरियलो में  हर कहानी को तोड़ मरोड़ कर ही दिखाते है, असलियत कभी दिखाते ही नहीं, फिर अक्सर लोग उसी को सच मान लेते हैं।


आजकल सोशल मीडिया के द्वारा भी छूटी खबरें फैलाते हैं और लोग उसे सच मान लेते हैं।


अंग्रेजो ने वर्षो पहले हमारे ग्रंथों, हमारी संस्कृति, हमारे कहानी के नायक नायिकाओं के चरित्र  को तोड़ मरोड़ कर बदल दिया है और हमारे लालची अवसरवादी लोगों ने उनका साथ दिया है।


उदाहरण के लिए महाभारत की नायिका द्रौपदी को  पांचाली पांच पतियों की पत्नी बना दिया है, जबकि महाभारत श्र्लौको में द्रौपदी ने हमेशा अपने एक पति युधिष्ठिर का ही नाम लिया है, अर्जुन ने स्वयंवर में द्रौपदी को जीता जरुर था, लेकिन शादी नही की थी।


राधा कृष्ण को लेकर किस तरह की हास्याप्रद कहानियां गढ़ी गयी हैं, सोचकर भी शर्म आती है। जब की कृष्ण ईश्वर है और राधा ईश्वर की भक्ति का नाम है।


हमे आज  जो सुख सुविधाए उपलब्ध है, उसका सही उपयोग कर अपने बच्चों को सही दिशा दे तो हम अपने पूर्वजों की धरोहर साहित्य जो हमें विरासत मिला  है उसे संजोकर रख सकते हैं।


*रश्मि एम मोयदे उज्जैन












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