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नो मोर नेतागिरी ( व्यंग्य)










*प्रो.शरद नारायण खरे*
जब हम स्कूल में पढ़ते थे,और एन.सी.सी में ट्रेनिंग करने जाते थे,तो हमें सिखाया जाता था कि नेता का मतलब होता है- वह जो कि नेतृत्व कर सके ,ग्रुप को लीड कर सके ! और बताया गया था कि ये गुण हर आदमी में होना चाहिए ! तो मुझे नेता शब्द से बहुत लगाव हो गया था,और मैं सोते- जागते नेता बनने के सपने देखने लगा था !
       उस समय मुझे सिखाया गया था कि भीड़ का नेतृत्व करने के लिए आदमी में भाषण देने की कला भी होनी चाहिए ! तो मैंने कॉलेज में दाखिला लेने के बाद अपने इस सपने को साकार करने की कोशिश शुरु कर दी,और मैं मंच से बोलने वाले कॉम्पटीशन्स जैसे भाषण- वाद विवाद इत्यादि में उत्साह से शामिल होने लग गया था ,क्योंकि मुझे नेता जो बनना था !        जब छात्रसंघ के इलेक्शन हुए तो मैं भी स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेटरी की फाइट करने मैदान में कूद पड़ा ! मैं स्टूडेंट्स को लीड करना चाहता था ,उनका नेतृत्व कपना चाहता था,इसलिए मैं यह मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता था !पर अब लोग मुझे नेता कहकर खुल्लमखुल्ला संबोधित करने लगे थे ! शुरू मैं तो मैं खुश होता था पर बाद में लगा कि यह तो वे मेरी खिल्ली उड़ाने के लिए कह रहे हैं ! यह उनका मुझ पर टोन्ट है ,एक मजाक है !
       कोई कहता ऐ भाईअब तुम पढ़ाई की जगह नेतागिरी करोगे ! तो कोई कहता लगता है पॉलिटिक्स जॉइन करने की तैयारी है,तो कोई कुछ और कमेंट पास कर देता ! पर गज़ब तो तब हो गई जब एक दिन मेरे बाबूजी ही बोल उठे-- अच्छा तो अब बरखुरदार लीडरशिप करेंगे !
     पर यह सुन-सुनकर मुझे कुछ अजीब सा फील होता ! मैं सोचता कि नेतृत्व करना तो बहुत अच्छी बात है,तो फिर लोग मुझ पर ऐसी कमेंटबाजी क्यों करते हैं ! मैं बहुत सोचता था पर मैं कुछ समझ नहीं पाता था ! ख़ैर वक्त गुजरता गया,और मैं बैंक में नौकरी करने लगा ! पर वहां भी जब भी मैं कर्मचारियों की ऑफिस सम्बंधी किसी परेशानी या असुविधा की बात मैनेजर या बड़े अफसरों से करता तो वे कहते -तुम नेतागिरी क्यों कर रहे हो ? मुहल्ले-पड़ोस, कॉलोनी,नगर की किसी भी समस्या या दिक्कत को मैं जब सम्बंधित विभाग के पास ले जाता ,तो वहां के कर्मचारी मुझे देखते ही कहते - लो नेता आ गया ! शुरू में मुझे ये अपनी तारीफ लगती थी,पर धीरे-धीरे मुझे समझ में आने लगा कि वे लोग मेरी हँसी उड़ाते हैं ! फिर तो लोगों ने मुझे नेता कहना ही शुरू कर दिया ! मानो मेरा असली नाम ही नेता हो !
      मुहल्ला-पड़ोस ,दफ्तर तो छोड़ दीजिए मेरे रिश्तेदार तक मुझे नेता कहने लगे थे ! एक बार मेरे दो रिश्तेदार आपस में मेरे बारे में जब बात कर कर रहे थे,तो उनमें से एक दूसरे से बोला कि-- दरअसल वो नेता नामक बंदा हर जगह उंगली करता है,हर जगह फटे में टांग अड़ाता है,इसलिए सब उसे नेता कहते हैं ! हर जगह होशियारी दिखाना और अपनी चलाना उसकी आदत है इसीलिए उस नेता को कोई पसंद नहीं करता है !
    यह सुनकर मैं ' काटो तो खून नहीं ' की हालत में पहुंच गया ! मैं समझ गया कि डेमोक्रेसी और पॉलिटिक्स के नेता तो अलग होते हैं ,और उन्हें तो सब घोषित रूप में लांछित करते ही हैं ,पर बाहर भी नेता को कदापि भी इज्जत की नजर से नहीं देखा जाता ! मैं समझ गया कि यह नेता वाला रूप तो हर जगह अपमानित है ! वैसे नेता वाला रूप तो समाज में हर जगह दिखता है,अच्छे नेता भी मिलते हैं,पर लोगों को किंचित भी स्वीकार नहीं  ! यह बात भी सत्य है कि सामाजिक क्षेत्र में भी,भले ही अच्छे मुद्दे को भी उठाया जाए,तो भी नेता शब्द लोगों की दृष्टि में अभिसप्त,प्रदूषित / अपमानजनक व तिरस्कृत ही होता है ! उसमें परिहास,उपेक्षा व व्यंग्य ही छिपा रहता है ! उसकी वजह यही है कि कुर्सी और वोटों की राजनीति करने वाले नेताओं ने उल्टे- सीधे काम /धंधे करके इस अच्छे व पवित्र शब्द एवं पोजीशन को इतना बदनाम व प्रदूषित  कर दिया है,इतना गंदा कर दिया है कि यह शब्द  जैसे केवल और केवलगाली बनकर रह गया है !
       तो भैया,अब तो मैंने कान पकड़ लिए हैं,तौबा कर ली है कि चाहे कुछ हो जाए,कैसा भी हो जाए,नेतागिरी करने का नहीं ! कौन गाली सुनें !तो दोस्तो,हमने तो नेतागिरी करना पूरी तरह से छोड़ दिया है ,आपकी आप जानें !
*प्रो.शरद नारायण खरे,मंडला(म.प्र.),मो.9425484382










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