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 मध्यप्रदेश की विविधवर्णी संस्कृति (मप्र स्थापना दिवस1नवम्बर पर विशेष)



*प्रो.शरद नारायण खरे*

मध्यप्रदेश की संस्कृति विविधवर्णी है। गुजरात, महाराष्ट्र अथवा उड़ीसा की तरह इस प्रदेश को किसी भाषाई संस्कृति में नहीं पहचाना जाता। मध्यप्रदेश विभिन्न लोक और जनजातीय संस्कृतियों का समागम है। यहाँ कोई एक लोक संस्कृति नहीं है। यहाँ एक तरफ़ पाँच लोक संस्कृतियों का समावेशी संसार है, तो दूसरी ओर अनेक जनजातियों की आदिम संस्कृति का विस्तृत फलक पसरा है।
निष्कर्षत: मध्यप्रदेश छह सांस्कृतिक क्षेत्र निमाड़, मालवा, बुन्देलखण्ड, बघेलखण्ड, महाकौशल और ग्वालियर हैं। धार-झाबुआ, मंडला-बालाघाट, छिन्दवाड़ा, होशंगाबाद्, खण्डवा-बुरहानपुर, बैतूल, रीवा-सीधी, शहडोल आदि जनजातीय क्षेत्रों में विभक्त है।
निमाड़ मध्यप्रदेश के पश्चिमी अंचल में स्थित है। अगर इसके भौगोलिक सीमाओं पर एक दृष्टि डालें तो यह पता चला है कि निमाड़ के एक ओर विन्ध्य की उतुंग शैल श्रृंखला और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा की सात उपत्यिकाएँ हैं, जबकि मध्य में है नर्मदा की अजस्त्र जलधारा। पौराणिक काल में निमाड़ अनूप जनपद कहलाता था। बाद में इसे निमाड़ की संज्ञा दी गयी। फिर इसे पूर्वी और पश्चिमी निमाड़ के रूप में जाना जाने लगा।
मालवा महाकवि कालिदास की धरती है। यहाँ की धरती हरी-भरी, धन-धान्य से भरपूर रही है। यहाँ के लोगों ने कभी भी अकाल को नहीं देखा। विन्ध्याचल के पठार पर प्रसरित मालवा की भूमि सस्य, श्यामल, सुन्दर और उर्वर तो है ही, यहाँ की धरती पश्चिम भारत की सबसे अधिक स्वर्णमयी और गौरवमयी भूमि रही है।
एक प्रचलित अवधारणा के अनुसार "वह क्षेत्र जो उत्तर में यमुना, दक्षिण में विंध्य प्लेटों की श्रेणियों, उत्तर-पश्चिम में चंबल और दक्षिण पूर्व में पन्ना, अजमगढ़ श्रेणियों से घिरा हुआ है, बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है। इसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले- जालौन, झाँसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रेदश के पांच जिले- सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में चंबल नदी तक प्रसरित विस्तृत प्रदेश का नाम था।" कनिंघम ने "बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के अशोक नगर जिलों सहित तुमैन का विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था", माना है।



बघेलखण्ड की धरती का सम्बन्ध अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से रहा है। यह भू-भाग रामायणकाल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था। महाभारत के काल में विराटनगर बघेलखण्ड की भूमि पर था, जो आजकल सोहागपुर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की वनगमन यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी। यहाँ के लोगों में शिव, शाक्त और वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है। यहाँ नाथपंथी योगियो का खासा प्रभाव है। कबीर पंथ का प्रभाव भी सर्वाधिक है। महात्मा कबीरदास के अनुयायी धर्मदास बाँदवगढ़ के निवासी हैॉ।
जबलपुर संभाग का संपूर्ण हिस्सा महाकोशल कहलाता है। नर्मदा नदी किनारे बसा यह क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक समृद्धता में धनी है।
मध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र भारत का वह मध्य भाग है, जहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियां घटित हुई हैं। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक-आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है। राजनीतिक घटनाओं का भी यह क्षेत्र हर समय केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता से पहले यहां सिंधिया राजपरिवार का शासन रहा था। १८५७ का पहला स्वतंत्रता संग्राम झाँसी की वीरांगना रानी महारानी लक्ष्मीबाई ने इसी भूमि पर लड़ा था। सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र ग्वालियर अंचल संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, चित्रकला अथवा लोकचित्र कला हो या फिर साहित्य, लोक साहित्य की कोई विधा हो, ग्वालियर अंचल में एक विशिष्ट संस्कृति के साथ नवजीवन पाती रही है। ग्वालियर क्षेत्र की यही सांस्कृतिक हलचल उसकी पहचान और प्रतिष्ठा बनाने में सक्षम रही है।
मध्य प्रदेश के 3 स्थलों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है, जिनमे खजुराहो (1986), सांची बौद्ध स्मारक (1989), और भीमबेटका की रॉक शेल्टर (2003) शामिल हैं। हाल ही में ओरछा को यूनेस्को द्वारा उसकी अस्थायी सूची में सम्मलित किया गया है ।अन्य वास्तुशिल्पीय दृष्टि से या प्राकृतिक स्थलों में अजयगढ़, अमरकंटक, असीरगढ़, बांधवगढ़, बावनगजा, भोपाल, विदिशा, चंदेरी, चित्रकूट, धार, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर, बुरहानपुर, महेश्वर, मंडलेश्वर, मांडू, ओंकारेश्वर, ओरछा, पचमढ़ी, शिवपुरी, सोनागिरि, मंडला और उज्जैन शामिल हैं।
मध्य प्रदेश में अपनी शास्त्रीय और लोक संगीत के लिए विख्यात है। विख्यात हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत घरानों में मध्य प्रदेश के मैहर घराने, ग्वालियर घराने और सेनिया घराने शामिल हैं। मध्यकालीन भारत के सबसे विख्यात दो गायक, तानसेन और बैजू बावरा, वर्तमान मध्य प्रदेश के ग्वालियर के पास पैदा हुए थे। प्रशिद्ध ध्रुपद कलाकार अमीनुद्दीन डागर (इंदौर), गुंदेचा ब्रदर्स (उज्जैन) और उदय भवालकर (उज्जैन) भी वर्तमान के मध्य प्रदेश में पैदा हुए थे। माँ विन्ध्यवासिनी मंदिर अति प्राचीन मंदिर है। यह अशोक नगर जिले से दक्षिण दिशा की ओर तुमैन (तुम्वन) मे स्थित हैं। यहाॅ खुदाई में प्राचीन मूर्तियाँ निकलती रहती है यह राजा मोरध्वज की नगरी के नाम से जानी जाती है यहाॅ कई प्राचीन दाश॔निक स्थलो में वलराम मंदिर,हजारमुखी महादेव मंदिर,ञिवेणी संगम,वोद्ध प्रतिमाएँ, लाखावंजारा वाखर गुफाएँ आदि कई स्थल है।पार्श्व गायक किशोर कुमार (खंडवा) और लता मंगेशकर (इंदौर) का जन्मस्थान भी मध्य प्रदेश में स्थित हैं। स्थानीय लोक गायन की शैलियों में फाग, भर्तहरि, संजा गीत, भोपा, कालबेलिया, भट्ट/भांड/चरन, वसदेवा, विदेसिया, कलगी तुर्रा, निर्गुनिया, आल्हा, पंडवानी गायन और गरबा गरबि गोवालं शामिल हैं।
प्रदेश के प्रमुख लोक नृत्य में बधाई, राई, सायरा, जावरा, शेर, अखाड़ा, शैतान, बरेदी, कर्म, काठी, आग, सैला, मौनी, धीमराई, कनारा, भगोरिया, दशेरा, ददरिया, दुलदुल घोड़ी, लहगी घोड़ी, फेफरिया मांडल्या, डंडा, एडीए-खड़ा, दादेल, मटकी, बिरहा, अहिराई, परधौनी, विल्मा, दादर और कलस शामिल हैं।


    अंत में मप्र की संस्कृति के बारे में यही कहा जा सकता है कि,

     "संस्कृति की नव चेतना,की बिखरी है धूप ।।

       निखर गई सारी ज़मीं,निखर गया है रूप ।।"

 

*प्रो.शरद नारायण खरे,मंडला(मप्र)-481661,मो.9425484382



 























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