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कुर्सी (दोहे)






*सुषमा भंडारी*



खींचातानी हो रही,कुर्सी का है लोभ।।
मिल न पाये ये जिसको,उसको होता क्षोभ।।

खूब नचाये नाच ये,माया ठगनी नार।
कुर्सी इसकी भी गुरु,जाने सब संसार।।

कुर्सी का लालच किया,खूब बढाया पेट।
अपने और पराये का,खूब किया आखेट।।

संसद में बाजार के,जैसा होता हाल।
जो जाने व्यापार को,वो ही मालामाल।।

कभी बाप को मारते,कभी गधे को बाप।
कुर्सी की खातिर करें,निर्मोही आलाप।।

कुर्सी बडी लुभावनी,कुर्सी बड़ी कमाल।
जनता भोली बावरी,कुर्सी डाले जाल।।

उजले उजले तन हुये,हुये हैं काले मन।
कुर्सी के मदमस्त सब,जहरीले आंगन।।



*सुषमा भंडारी, फ्लैट नम्बर- 317,प्लैटिनम हाइट्स,सेक्टर-18 बी , द्वारका,नई दिल्ली- 110078 , मो.9810152263


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