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हास्य को परिहास में मत उड़ाओ (लेख)






*कुसुम सोगानी*
हास्य के स्वास्थ्य प्रभाव पर वर्षों से चर्चा होती रही है।अब साबित हो चुका है कि हंसी अवसाद घटाती है , दर्द मिटाती है ,और हमारे नर्व्स सिस्टम को गति ऊर्जा प्रदान करती है। हास्य वह क्रिया है जिसमें इंसान ही होंठ खोलकर अजीब आवाज निकलता है।यह मनुष्य के विकास क्रम की देन है जो हंसी भी कहलाती है। ऐसे तो चिंपान्जी भी हंसते हैं पर इंसान के हास्य रूप की शुरुआत शतक वर्षों पूर्व हुयी होगी शायद!! हास्य को यूनिवर्सल लैंग्वेज भी माना गया है जिसे बच्चे तीन वर्ष की आयु में ही सीख जाते हैं। हँसी मन की जटिल गुफा सेनिकलती है लेकिन ये एक सामाजिक कर्म या संदेश भी है। अकेला तो शायद ही कोई हंसता हो लेकिन जब सबके बीच कोई हँसता है तोवहां कई मकसद होते हैं – जैसे रौब जमाना दूसरों को नीचे दिखाना इंकार ,मंज़ूरी ,मित्रता पूर्ण माहौल या मजाक उड़ाना कुछ भी हो सकता है। रोम देश में सज़ा के तौर पे क़ैदी को गुदगुदाकर इतना हँसाया जाता था कि वो मर ही जाते थे। नौकरी करने वाले जानते होंगे कि बॉस के घटिया जोक पर हंसना दासता का स्वरूप है। पर आजकल ह्यूमर की हँसी की बात होती है। यह हास्य स्वास्थ्य दायक क्रीड़ा भाव से जुड़ी प्लेटफुल हंसी है।
गेलोटोलॉजी के नाम से हास्य का पूरा साइंस मौजूद है। लेकिन हम इन सीरियस बातों में जाकर हास्य का मजा क्यों किरकिरा करें। किसी हास्य फ़िल्म जैसे मुन्ना भाई पर लौटें और दिल खोलकर हँसे। हाव भाव से नहीं मन से भी .. हंसने के लिये बच्चा बनना होगा क्योंकि बच्चे ही निश्छल हंसी हँसते हैं और हास्य के इस खेल को बड़े लोग भूल चुके हैं। तो आओ हास्य को परिहास में न लेवें बल्कि हँसना प्रारंभ करें।


*कुसुम सोगानी 2/2 पारसी मोहल्ला,दिगंबर जैन मंदिर मेन रोड के पास-जीपीओ-छावनी,इंदौर -(मप्र)Mob- 09999882441







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