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दीवाली विशेष-दीपक (कविता)











*सुनील कुमार माथुर* 


कुम्हार ने मिट्टी से दीपक को आकार दिया


आकार पाकर दीपक ने मन ही मन


यह विचार किया कि


कुम्हार ने मुझे दीपक का आकार दिया 


अतः अब


मुझे उसकी मेहनत को सफल करना होगा 


जनकल्याणकारी कार्य में 


अपने को झोंक कर कुम्हार का


मुझे मान सम्मान बढाना होगा 


बस दीपक ने यह ठान लिया और 


दीपक ने रूई  की बाती और तेल से सम्पर्क कर


उन्हे अपना साथी बनाया 


दीपक की बात पर 


रूई की बाती और तेल राजी हो गये


दीपक ने तेल को अपने में भरकर


रूई की बाती को अपने गोद में बैठाया


और माचिस की तीली से बोला


बहना इस बाती को आग लगाना


तेल और बाती ने जलकर


रात के अंधेरे में प्रकाश कर


उजियारा फैलाया


राह भटकते राहगीरों को


सही मार्ग दिखाया


तभी से यह कहावत बनी


शिक्षा अज्ञानता रूपी


अंधकार को मिटाकर ज्ञान रूपी


प्रकाश फैलाये 


दीपक की बात पर विश्वास कर


बाती और तेल ने


 अपने प्राणों की आहुति देकर


दीपक व कुम्हार का मान सम्मान बढाया


अगर इस संसार में आये हो तो


कुछ ऐसा कर जाये कि 


आने वाली पीढियां भी


कुछ समाज के उत्थान के लिए करें 


बाती और तेल की कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई


आज दीपावली पर हम


जो रोशनी देख रहे है वह


उसी का परिणाम है 


आओ हम सब मिलकर 


यह संकल्प ले कि देश से


अज्ञानता रूपी अंधकार का नाश हो


और 


सर्वत्र ज्ञान रूपी प्रकाश फैले


*सुनील कुमार माथुर ,जोधपुर(राजस्थान)












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