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बुद्धि परीक्षा 












किसी नगर में शशिधर भट्ट नाम का एक राजा राज्य करता था ।उसके तीन पुत्र थे । वह सभी पुत्रों को जी जान से चाहता था । तीनों पुत्र घुडसवारी में जितने तेज थे , उतने ही बुद्धि से भी तीव्र थे । राजा वृध्दावस्था में था । उसने सोचा कि मेरा क्या भरोसा कब चला जाऊं । अतः मरने से पूर्व ही शासन का संचालन किसी योग्य पुत्र को सौंप दूं तो अच्छा रहेगा अन्यथा मेरे मरने के बाद ये राज सिंहासन के लिए लड न पडे । अतः एक दिन महाराज ने अपने तीनों पुत्रों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं आज अपने तीनों होनहार पुत्रों की परीक्षा लेना चाहता हूं । हालांकि मुझे तीनों की बुद्धि और चतुराई पर गर्व है फिर भी मैं तुम्हारी बुद्धि की परीक्षा लेने हेतु आज तुम्हें यहां बुलाया हैं ।

            महाराज की बात सुनकर तीनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे और मन ही मन सोचने लगे कि न जाने महाराज कैसी परीक्षा लेंगे । कुछ देर बाद महाराज ने अपना मौन तोडते हुए कहा कि आप लोगों की बुद्धि की परीक्षा लेने हेतु तीनों को बीस बीस हजार रूपये की राशि दे रहा हूं और यह देखना चाहता हूं कि कौन इस राशि का सही उपयोग कर राजपाठ सम्भालने का अधिकारी बनता है । मैं आप तीनों पुत्रों को छ : महीने का समय देता हूं । सभी अपनी बुद्धिमानी का परिचय छ : महीने बाद बताये ।

         बीस बीस हजार रूपये की राशि लेकर तीनों राजकुमार अलग अलग दिशा में चल पडे । बडे पुत्र ने अपने धन से व्यापार किया । मंझले ने सारा धन लाटरी पर लगा दिया एवं छोटे पुत्र ने वह धन गरीब किसानों को कृर्षि हेतु बीज हल एव अन्य कृर्षि के काम में आने वाली सामग्री खरीदने के लिए खर्च कर दिये ।

       छ : महीने के बाद तीनों राजकुमार दरबार में आये । महाराज ने सबसे पहलें बडे पुत्र को बुलाकर पूछा कि उसने बीस हजार रूपये की राशि कैसे खर्च की । इस पर उसने बडे गर्व के साथ कहा कि महाराज मैने उक्त राशि व्यापार में लगाई और मुझे व्यापार में इन छ : महीने में एक लाख रूपये का लाभ हुआ । बडे पुत्र का जवाब सुनकर महाराज को बडी निराशा हुई और वे सोचने लगे कि धन के लोभ में यह कैसे राज्य चलायेगा ।

            इसके बाद राजा ने मंझले पुत्र को बुलाया । उसने कहा महाराज मैंने उक्त राशि से राज्य में लाटरी शुरू कर पन्द्रह लाख रूपये कमाये । आपको अगर विश्वास न हो तो यह देखिये नोटों की गढिढयां । मंझले पुत्र से भी संतोषजनक उतर न पाकर महाराज और भी अधिक उदास हो गये और सोचने लगे कि बडे दोनों पुत्रों ने धन को नेक कार्य में नहीं लगाया तो छोटा कौन सा तीस मारखा निकलेगा  ?

               अन्त में उन्होंने अपने सबसे छोटे पुत्र को बुलाया और उससे पूछा कि पुत्र तुमने अपने धन का क्या किया ? इस पर नन्हें राजकुमार ने कहा पिताजी ! मैंने अपना सारा धन गरीब किसानों में हल बीज खाद व कृर्षि के लिए काम आने वाले अन्य आवश्यक सामान की खरीद हेतु किसानों में बांट दिये । इसलिए मेरे पास अब एक भी पैसा नहीं बचा ।

        यह सुनकर महाराज ने कहा बेटा ! तुमने यह क्या किया  ? सभी धन गरीब किसानों में बांट कर खाली हाथ घर आ गये । जबकि तुम्हारे दोनों बडे भाइयों ने अपना धन व्यापार व लाटरी में लगाकर कुछ कमाया ही हैं गंवाये नहीं है यह सुनकर नन्हा राजकुमार बोला पिताजी ! मात्र धन कमाने से राजपाठ नहीं चलता है  । मैंने गरीब किसानों में धन इसलिए बांटा है ताकि वे अच्छे बीज खाद हल बैल व अन्य जरूरत का सामान लाकर अच्छी फसल पैदा कर सके ।

                जब तक जनता भूखी रहेगी तब तक वह कुछ भी नहीं कर सकती । मात्र धन से शत्रुओं से नहीं लडा जा सकता अगर जनता भूखी हो और शत्रु देश पर आक्रमण कर दे तो क्या वे भूखे पेट लड सकते हैं  यह सुनते ही महाराज ने नन्हें राजकुमार को अपने गले लगा लिया और कहा कि वास्तव में मुझे आज मालुम पड गया कि तुम तीनों में से कौन बुद्धिमान है । यह सत्य है कि भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता है फिर शत्रु से लडना तो बसुत बडी बात है । यह भी सत्य है कि आदमी को दो वक्त की रोटी भर पेट मिल जाये तो वह शक्तिशाली से भी भिड सकता है । नन्हें राजकुमार की बुद्धि को देखकर राजा ने उसे राज सिंहासन सौंप कर एवं स्वंय राजपाठ छोडकर ईश्वर भक्ति में लीन हो गये ।

 

*सुनील कुमार माथुर,जोधपुर ( राजस्थान )




 













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