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बिखरे सपने (लघुकथा)







*रश्मि एम मोयदे*


वाह भाभी, क्या टेस्टी खाना बनाया है, ये मलाई कोफ्ता, दाल फ्राई, दही वड़ा, गुलाब जामुन और इतना खूबसूरत सजा सलाद, लगता है कि हम घर पर नहीं किसी फाइव स्टार होटल में खाना खा रहें हैं।


राहुल तुम बड़े भाग्यशाली हो, तुम्हें इतने बड़े शहर में पली, पढ़ी लिखी सुंदर सुशील अन्नपूर्णा जैसी पत्नी मिली है।


हमारा भी सौभाग्य है, हमें आये दिन भाभी के हाथ का खाना खाने को मिलता है।


राहुल के दोस्तों को  खाना खिलाने  के बाद रानी ने जूठे बर्तन उठाये, किचन की सफाई कर मां जी को आवाज दी, आइये मां आप भी खाना खा लीजिए।


सब ने खा लिया, जी मां।


रानी ने थाली में खाना लगाकर सविता के  सामने रख दी। सविता ने एक कोर मूंह में रख मूंह बनाया तो रानी ने पूछा मां खाना ठीक तो बना है ना, आज सभी ने खाने की बहुत प्रशंसा की है, इसलिए पूछ रही हूं।


ठीक है, पर दाल सब्जियों में कुछ स्वाद नहीं है। दही वड़ा और गुलाबजामुन भी थोड़े और अच्छे बनाना था, जैसे मैं बनाती हूं।


रानी का मन भर आया, सोचने लगी कितना भी अच्छा खाना बनाऊं, मां कुछ ना कुछ कमी निकाल ही देती है, वैसे तो मां दिल की अच्छी है, पर सास का ठसका भरा पड़ा है।


अनमने मन से रानी ने खाना खाया, जूठे बर्तनो का ढेर लग गया, छोटे गांवों में बर्तन वाली भी नहीं मिलती।


रानी रोज सुबह पांच बजे उठती है, रात बारह बजे के पहले सो नहीं पाती, आये दिन मेहमानों के कारण ओर काम बड़ जाता है।


 सास ससुर, दो ननद राहुल और दो छोटे बच्चे, एक बेटा और एक बेटी।


सबकी अपनी-अपनी पसंद और फरमाइशें, रानी का सारा दिन ऐसे ही निकल जाता है


दिन महीने साल निकलते गये, राहुल ने दिन रात मेहनत करके  अपना बिजनेस ओर बड़ा लिया, दोनों बहनें शादी के बाद शहरों में बस गई।


  रानी आज भी वही दिनचर्या निभा रही थी, उसके दोनों बच्चे पास वाले छोटे शहर में पढ़ाई के लिए बस से आने-जाने लगे।


अब राहुल को थोड़ा समझ में आया कि ये दोनो बच्चे जमाने के हिसाब से पढ़ाई में कमजोर रह जायेंगे तो फिर उन्होंने बड़े शहर में किराए का मकान लिया, वहां रानी के साथ दोनो बच्चों को अच्छी  शिक्षा के लिए रखा।


अब रानी थोड़ी स्वतंत्र होकर अपनी जिंदगी जीने लगी, समाज से जुड़ी, बहुत सी नई नई सहेलियां बनाई। बीच बीच में कभी कभी रानी भी गांव जाती परन्तु शीघ्र लौट आती।


बच्चे बड़े होने लगे, रानी ने राहुल से कहीं बार शहर में मकान खरीदने के लिए मनाया, लेकिन राहुल का हर बार एक ही उत्तर होता बच्चों की पढ़ाई के बाद तो हमें फिर से गांव में ही रहना है, मेरा सारा बिजनेस तो गांव में है।


आज कुछ साल बाद बेटी की शादी हो गई और  बेटा  उच्च शिक्षा के लिए विदेश चला गया।


रानी फिर से अपने छोटे गांव में फिर से  वही पुरानी दिनचर्या। 


अब तो उसका गांव में बिल्कुल मन नहीं लगता, गांव का माहौल वैसा ही, घर की बहूये  घर के बाहर नहीं निकलती है दिनभर इतने बड़े घर में काम करते करते थक जाती है, कोई हमउम्र बात करने वाला नही, आज भी कामवाली बाईयां ठीक से नहीं मिलती, सारा काम रानी को करना पड़ता था। 


रानी क्या करे, उसे शुरू से गांव का माहौल पसंद नही था। मध्यम वर्गीय मम्मी पापा की मजबूरी और छोटे छोटे भाई बहनों के कारण उसकी शादी  पढ़े लिखे स्मार्ट स्वरोजगार राहुल के साथ हुई थी। सोचा था, जल्द ही गांव से निकल कर शहर में दोनों मिलकर सर्विस कर लेगे, लेकिन राहुल ने अपने खुद के बिजनेस को प्राथमिकता दी।


अब रानी क्या करें।


दिन-रात मेहमान, खाना, नाश्ता, उबाऊ जिन्दगी के बाद भी अपने सपनों का गला घोट, अपने कर्त्तव्यो का,  अपने संस्कारों के साथ जीवन निर्वाह कर रही है।


एक कृषक की पत्नी को अपने जीवन में कितना त्याग करना पड़ता है। जो आज हमें हमारी थाली में भरपूर स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार मिल रहा है, उसके पीछे कितनी रानी जैसी महिलाओं ने अपने सुख का बलिदान किया है। कितनी महिलाओं के सपने बिखर गए हैं। इसका अंदाज  हम  नहीं लगा सकते हैं।


*रश्मि एम मोयदे, मंछामन गणेश कालोनी, उज्जैन मो.7000781619








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