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स्वर्ग- नरक (कहानी)



*रतनलाल शर्मा 'नीर'*


नानालाल जी हमेशा ही गुंडे व  धन बल के दम पर चुनाव जीतते आ रहे है ।नानालाल जी चुनाव जीतने के लिए साम ,दाम,दण्ड, भेद,नीति से चुनाव जीत जाते  है।
नानालाल जी इस बार भी बड़ी मुश्किल से जुगाड़ करके टिकट लेकर आ गए और इस बार भगवान् भोलेनाथ की शरण मे चले गए।अपनी जीत की खातिर भगवान् भोलेनाथ को प्रसन्न करने केलिए कड़ी तपस्या करने लगे। भगवान् भोलेनाथ प्रसन्न हो कर नानालाल जी को सपने मे  दर्शन दिये और कहा -
"हे भक्त में तेरी भक्ति से प्रसन्न हुआ,मांगो क्या वरदान मांगना चाहते हो ।"
नानालाल जी ने कहा -
"है भोलेनाथ मुझे ऐसा वरदान चाहिए में छल - कपट या बेइमानी से जीतू  या धर्म की आड़ मे में इन्सानियत का खून करू लेकिन जीत मेरी हो व मेरे प्रतिद्वंद्वी बाबु राम की हार हो और हार के साथ उसकी पारिवारिक जिन्दगी की नेया भी डूबे ऐसा मुझे वरदान चाहिए।"
भोलेनाथ ने कहा -
"हे भक्त ये केसा वरदान मांग लिया, तुमने मुझे संकोच मे डाल दिया ।"
नानालाल जी ने कहा -
"हे भोलेनाथ केसा संकोच ।"
भगवान् भोलेनाथ ने कहा-
"हे भक्त तुम जीत का वरदान मांग रहे हो वो तो ठिक हे लेकिन उसकी जिन्दगी की नेया क्यो डुबाना चाहते हो।"
भक्त ने कहा - 
"हे भोलेनाथ उसकी जिन्दगी की नेया डुबेगी तो वह कभी भी  मेरे खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नही कर पाएगा ,क्यो की जीत हमेशा मेरी होनी चाहिए ।"
भगवान् भोलेनाथ ने कहा- 
"तथास्तु ।"
तभी उसी समय नारद जी वहा आ ग्ए और भगवान् भोलेनाथ से कहा-
"हे प्रभु इस पापी व  अधर्मी ये केसा वरदान दे डाला ।"
भगवान् भोलेनाथ ने कहा- में इसकी भक्ति से प्रसन्न हुआ इसलिए ,मेरा का हे भक्त को वरदान देना ,और  मुझे पता हे इसके पाप का गड़ा अभी  भरा नही हे ,जिस दिन लेखा जोखा का हिसाब करने वाले चित्रगुप्त जी मुझे बता देंगे उसी दिन से इसके जितने का वरदान भी समाप्त हो जाएगा ।"
नारद जी ने कहा - 
"आपने उस इमानदार व सच्चे इन्सान बाबुराम जो इसका प्रतिद्वंद्वी हे जीतने का आशिर्वाद तो उसको दिया हे इसकी तो  हार  होगी फिर इसको हारने की सजा क्यो ?"
भोलेनाथ ने कहा -
उसकी किस्मत मे जीत नही लिखी हे,उसकी हार मे ही उसकी जीत हे ,लेकीन उसका भविष्य उज्ज्वल होगा।"
एक दिन नेताजी नानालाल जी इस दुनिया से विदा हो गए उनको यमराज के दुत सिधे नर्क के द्वारा ले कर गए , उस समय यमराज जी के दुत  पापी मनुष्य को कठोर से कठोर यातना दे रहे थे किसी को गर्म तेल मे डाला जा रहा हे,किसी को जहरीले सांपो के बिच डाल दिया,किसे को कीड़े के कुण्ड डाला जा रहा था, ये सब देख  कर नानालाल जी बुरी तरह डर गए ।
अब नानालाल  का यातना भुगतने का समय आ गया ।
नानालाल ने कहा- 
"मुझे तो स्वर्ग मे जाना था ,यहा नर्क मे क्यो लाए।" 
यमराज ने हंसते हुए कहा -
"तुमने स्वर्ग के बारे मे सुना है ।" नानालाल ने कहा -
मेने ऐसा सुना हे मनुष्य के मरने के बाद स्वर्ग मे बड़े आराम से रहते है,और जो पृथ्वी पर अच्छे कार्य करता हे ,उनको ही स्वर्ग नसीब होता हे,
यमराज ने  हंसते हुए कहा -
"तुमने जो   सुना हे उससे कई गुना अच्छा आराम मिलता हें में तुझे स्वर्ग लोक का लाइव टेलीकास्ट दिखाता हु।"
जब नानालाल ने स्वर्ग लोक का लाइव टेलीकास्ट देखा तो उसे यकीन नही हुआ । मन मे सोचने लगा स्वर्ग लोक का नजारा बहुत ही अद्भुत हे ,
नानालाल ने स्वर्ग लोक का नजारा देख कर यमराज जी से कहा-
" में तो देश सेवा व  अच्छा काम करता था। फिर आप मुझे नर्क मे क्यो लेकर आए ।
यमराज ने हसंते हुए  कहा-
"हे मुर्ख मानव तुम पृथ्वीवासियो  को बेवकूफ बना सकते हो, मुझे नही, तुम्हे सिर्फ सो मे से दस  नंबर ही मिलेंगे ।"
नानालाल जी ने कहा- 
"मुझे सो मेसे दस नंबर ही क्यो मिल रहे हे,जबकि में देश का बहुत बड़ा नेता था ।पुरी जिन्दगी जनता की सेवा मे बिताती ।"
यमराज जी ने हंसते हुए कहा -
हे मुर्ख मानव 
"तुम तो सौ मे से दस नबंर के लायक भी नही थे लेकिन मैने चित्रगुप्त जी से तुम्हारी सिफारिश की थी इसलिए तुम्हे सो मे से  दस नबंर मिले ,जबकि धर्म राज जी तो तुम्हे जीरो नबरं देने वाले थे ।"
यमराज जी ने हसंते हुए कहा - तुम्हारी जिंदगी की पोल खुलेगी  तो तुम मुझे ही दोषी ठहरा ओगे और कहोगे की आपके  विपक्षी पार्टी वालो ने कान भर दिये हे,या आप  भी उनसे मिल गये हो ,फिर यमराज जी ने कहा -
"हे मुर्ख मानव तुमने राजनीति मे आगे बढऩे केलिए धर्म के नाम पर इन्सानियत का खून करवाया तुमने बम ब्लास्ट करवाके कई मासूमो को मोत के घाट उतारा,  राजनीति मे आगे बढने केलिए अपने भाई के पीठ पिछे छुरा गोपा और तुम कहते हो की में तो निर्दोष हु,गरीबो की रोजी रोटी तुमने छीनी, पशुओ का चारा तुम खा गऐ, देश का तुम कोयला तक खा गए, किसानो की जमीनो को भी कोड़ीयो के भाव बेच दी, फिर  तुम  कहते हो में निर्दोष हु।
तुम सबसे बड़ा पापी व अधर्मी इन्सान हो, इसलिए धर्मराज जी ने तुम्हारे लिए नर्क का द्वार चुना है ।"
बहुत दुखी होकर नानालाल ने कहा - 
"तो स्वर्ग लोक मे कौन  जाता हे।"
यमराज जी ने हंसते हुए कहा -
" अरे मुर्ख तुम्हारा प्रतिद्वंद्वी बाबुराम स्वर्ग लोक गया है ।"
यह बात सुनकर वह गहरी चिन्ता मे पड़ गया ।
उस समय यमराज के दो दुत जोर-जोर से हंसते हुए नानालाल को पकड़ कर ले गए 
और उसको तेल के गर्म कुण्ड मे डाल देते हे, फिर उसको जहरीली सांपो के बिच छोड़ा जाता हे उस समय   नानालाल जोर जोर से चिल्ला रहा था। बचाओ- बचाओ मुझे सांप डस लेंगे  अब मे पाप नही करूँगा  जनता की इमानदारी से सेवा करूँगा । जब वह जोर जो र से चिल्ला रहा था। तो अचानक उसकी पत्नी उठ गई  क्या हुआ आप क्यों इतने डरे हुए हो । तभी नानालाल ने चिल्लाते हुए कहा इन यमदूतो से मुझे बचाओ - बचाओ ।
अचानक नानालाल की निंद उड़ती हे तो वह यह सपना देख रहा था ।इतना भयानक सपना देख कर उसका मन बदल गया व इमानदारी कार्य करने लगा। 


*रतनलाल शर्मा  (मेनारिया) "नीर", भावलियाॅ, तहसील -निम्बाहेडा, जिला - चितोडगढ ,राजस्थान 




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