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मन के विकारों को दूर करके ही सद्भाव लाया जा सकता है


डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन स्मृति सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान माला के द्वितीय दिवस पर पंडित फारुख रामायणी का व्याख्यान



उज्जैन (डॉ. गिरीश पण्ड्या) उज्जैन नगरी बाबा महाकालेश्वर की नगरी है और शिव परिवार सद्भाव का सबसे अनुपम उदाहरण है। शिव परिवार में जहां नंदी और सिंह एक साथ पानी पीते हैं, तो वहीं मोर और चूहे भी एक साथ बैठते हैं।  यदि  हम अपने मन के विकारों को दूर कर दें तो समाज में सद्भावना लाना बहुत ही आसान होगा। हमारा मन यदि भक्ति भाव से ओतप्रोत है तो मन के विकार दूर हो जाते हैं। हमें राम की संस्कृति को जीवन में उतारना चाहिए ।रामकथा नोट प्राप्त करने का नहीं बल्कि मोक्ष प्राप्त करने का माध्यम है । तुलसीदास जी को रत्नावली ने तनहाइयां दीतब जाकर उनके  भीतर भावनाओं की गहराइयां आईतब जाकर उनके साहित्य ने ऊंचाइयां प्राप्त की और तब जाकर हमें चौपाइयां प्राप्त हुई। वेद हमें सिखाते हैं कि हम मनुष्य हैं तो मनुष्य का ही संस्कार धारण करें । चारों वेदों में कुल बीस हजार चार सौ सोलह  मंत्र हैं यह हमें जीवन जीने की सीख देते हैं। प्रत्येक धर्म एक दूसरे का सम्मान करना सिखाता है। आपसी द्वेष और बेर की किसी भी धर्म में या किसी भी मजहब में कोई जगह नहीं है। यदि हम एक दूसरे के धर्मों को जानेंगे तो अमन की हवाएं निश्चित रूप से बहेंगी। उक्त विचार नरसिंहगढ़ से पधारे सर्वधर्म वक्ता प. फारूक रामायणी जी ने भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित कवि कुलगुरू डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन स्मृति सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान माला के द्वितीय दिवस पर 'सर्वधर्म समभावविषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। प. फारूक रामायणी जी ने कहा कि हिन्दुमुसलमानसिक्ख या इसाई कभी बुरा नहीं होता है लेकिन मन में बुराई आ जाये तो इंसान जरूर बुरा बन जाता है। जब हम पराई पीर को अपनी पीर समझना शुरू कर दे तो सद्भावना अवश्य आयेगी।



अध्यक्षीय उद्बोधन में इन्दौर के प्रसिद्ध पत्रकार एवं चिंतक श्री चिन्मय मिश्र ने ''देश में सद्भावना की महत्वता'' विषय पर कहा कि सद्भावना का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है कि रामचरितमानस को गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक मस्जिद में बैठकर पूर्ण किया था  यदि हमें समाज में सद्भावना लानी है तो सबसे पहले हमें स्वयं की व्यक्तिगत पहचान मिटाना होगी। यदि हम हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई जैसी जातिगत पहचानो में उलझे रहेंगे तो समाज में सद्भावना कभी नहीं आ सकती। सद्भावना सिर्फ दो मनुष्यों के बीच में प्रेम से भी संभव नहीं है बल्कि हमें पेड़-पौधों से भी प्रेम करना होगा, नदियों, पहाड़ों, पक्षियों से भी प्रेम करना होगा। यदि हम नफरत का रास्ता अपनाते हैं तो उससे समाज में सिर्फ नफरत ही उत्पन्न होती है।



समारोह में व्याख्यानमाला के संयोजक श्री प्रेमनारायण नागर विशेष रूप से उपस्थित थे। व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्था की छात्राओं ने सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत श्री उद्धव जोशीश्री गरीब परदेशीश्री मथुराप्रसाद शर्माश्री रमेशचन्द्र जोशीखादिक भाई मंसुरीश्री विनोद काबरा एवं हाजी शेख नियाज मोहम्मद ने किया। स्वागत उद्बोधन संस्था अध्यक्ष श्रीकृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया।


इस अवसर पर वक्ताओं का शाल और श्रीफल से सम्मान किया गया। संचालन डॉ. सीमा दुबे ने किया। आभार शिक्षा महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. रश्मि शर्मा ने माना।


 


अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला में कल दिनांक 28 सितम्बर 2019 शुक्रवार के व्याख्यान


सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला दिनांक 28 सितम्बर 2019 को सांय 5 बजे से राष्ट्रीय कार्यकारिणी अल्पसंख्यक विभाग नई दिल्ली के सदस्य हाजी श्री अरशान खान 'देश की ज्वलंत समस्यायें कारण एवं निवारणविषय पर अपना व्याख्यान देंगे एवं अध्यक्षता करते हुये कोटा जिले के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं  दैनिक जननायक के पूर्व संपादक श्री अख्तर खान अकेला 'सोशल मीडिया का महत्वविषय पर अपना व्याख्यान देंगे।



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