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महात्मा गांधी -चिंतन और चरित्र(लेख)








-सरिता गुप्ता

 

दोस्तों जिसके नाम के शुरू में ही महात्मा लग जाता है, उसके व्यक्तित्व की ,चरित्र की व्याख्या तो स्वत: ही हो जाती है ।महात्मा अर्थात महान आत्मा वाला ।उनका यह  नाम सारे विश्व ने स्वीकार किया। महात्मा किसी को कहना, यह कोई सामान्य बात नहीं। ऐसा विशेषण उनके लिए इसलिए चुना, क्यों कि उनका चिंतन, उनकी शिक्षा, उनका चरित्र, उनका देश प्रेम, त्याग ,समर्पण सभी कुछ अनुकरणीय है ।महात्मा गांधी के नाम का जब भी जिक्र होता है ,तब एक कृश शरीर ,लाठी लेकर, धोती पहनकर दृढ़ संकल्प के साथ दौड़ता हुआ नजर आता है ।लोगों का मानना है ,उनके मन का संकल्प और उनका जुनून उनकी चाल में नजर आता था। वे चलते थे और लोग दौड़ते थे। उनकी वाणी में ओज था, तभी तो उनकी एक आवाज पर देश की महिलाओं ने अपने गहने अपने कीमती वस्त्र  उनकी झोली में डाल दिए ।उनके सम्मान में कहती हूं-

 

व्यक्ति की अभिव्यक्ति ही, है उसकी पहचान ।

थोथी बातों से नहीं ,मिलता है सम्मान।।

 

गांधी जी के चिंतन ने देश को एक नई सोच और एक नई दिशा प्रदान की। जाति पाति के भेद, रंगभेद नीति ,स्वदेशी वस्तुओं को अपनाओ, विदेशी चीजों का बहिष्कार करने का बीड़ा उठाया, नारी को कभी अबला मत समझो, भारत छोड़ो आंदोलन ,सत्याग्रह, नमक आंदोलन ऐसे अनेक काम है जो गांधी जी ने किए और लोगों ने बिना किसी तर्क के उन्हें स्वीकार किया और उनका अनुसरण किया। यह सच है कि आजादी की लड़ाई में अनेक ऐसे लोग थे जो नींव की ईंट बनकर रह गए ,मगर यह भी सत्य है कि गांधी जी ने ही देश में आजादी के विचार की चिंगारी को मशाल बनाने का काम किया।जब जब भी गांधीजी को पढ़ा तो यही समझ में आया कि उनका चिंतन कितना गंभीर और कितना सार्थक था ।उनके जीवन के अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो, अविस्मरणीय हैं तथा अनुकरणीय है। सभी जानते हैं निरंतर पढ़ना लिखना, चिंतन करना उनके जीवन के लिए उतना ही महत्वपूर्ण था जिस तरह हर व्यक्ति के लिए सांस लेना। एक बार की बात है जब गांधी जी कुछ देर विश्राम करने के लिए गए तो उनके साथी कर्मचारी ने सोचा कि चलो गांधी जी का कमरा अस्त-व्यस्त पड़ा है उसे ठीक कर देता हूं गांधीजी के सामने तो उस कमरे में प्रवेश करना  पूरी तरह वर्जित  ही था। यही सोच कर वह कमरे में गया और इधर उधर बिखरे सामान को ठीक करने लगा ।तभी उसकी नजर उस कलम पर पड़ी जिसकी स्याही खत्म हो गई थी, उसने सोचा कि यहां मैं दूसरी कलम रख देता हूं और उसने खाली कलम को खिड़की से बाहर फेंक दिया। विश्राम के बाद गांधीजी उठकर आए और आकर अपनी कुर्सी मेज पर बैठ गए।उन्होंने वहां अपनी पुरानी कलम को नहीं देखा तो  तुरंत सेवक को आवाज लगाकर कहा -" मेरी कलम कहां है "?सेवक ने कहा-" उसमें स्याही खत्म हो गई थी इसीलिए मैंने उसे खिड़की से बाहर फेंक कर आपके लिए नई कलम यथा स्थान रख दी है"। गांधीजी तुरंत कुर्सी से उठ खड़े हुए और बोले -"अभी वह कलम ढूंढ कर लाओ यह कलम देश के पैसे से आती है और हमें देश का धन व्यर्थ करने का कोई अधिकार नहीं""। ऐसे अनेक प्रसंग है जिससे हमें ज्ञात होता है कि गांधी जी की सोच और उनका चिंतन अद्भुत था। गांधी जी का बचपन आदर्शों के बीच में बीता क्योंकि उनके पिता को भी धन का कोई लोभ नहीं था और मां बहुत ही धार्मिक और आदर्श विचारों की महिला थी।बचपन से ही अपनी मां से सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा पाई थी।वे कहीं भी जाते, कहीं भी आते अपने आप को कभी उन्होंने विशेष व्यक्ति नहीं समझा।  वह सदैव देश के एक सामान्य नागरिक की तरह रहना चाहते थे।

एक बार की बात है गांधीजी ट्रेन से यात्रा कर रहे रेल में बहुत भीड़ थी। बहुत देर खड़े रहने के बाद भी गांधी जी ने किसी से भी सीट के लिए आग्रह नहीं किया। यह बात उन दिनों की है जब देश नहीं जाति पाति और ऊंच-नीच का भेदभाव बहुत ज्यादा था ।बहुत देर के बाद एक सीट खाली हुई।जिस पर एक भद्र पुरुष अपना अधिकार जमाए बैठा था ।जब गांधी जी बैठने लगे तो उसने पूछा-" आप किस जाति के हैं "?गांधीजी ने कहा -"आपको कौन सी जाति चाहिए "?भद्र पुरुष ने कहा -"मतलब "?गांधी जी ने कहा -"जब मैं सुबह शौच के लिए जाता हूं तब मैं हरिजन बन जाता हूं ।जब मैं अपने वस्त्र धोता हूं तब मैं धोबी बन जाता हूं।जब मैं पूजा करता हूं तब मैं ब्राह्मण होता हूं और जब मैं अपने हक के लिए लड़ता हूं तब मैं क्षत्रिय होता हूं अब आप स्वयं ही निश्चित करें मैं किस जाति का हूं"। ऐसा सुनकर वह भद्र पुरुष उनके चरणों में गिर गया। इस प्रकार के ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो हमें उनकी विनम्रता, योग्यता एवं देश प्रेम से अवगत कराते हैं। दोस्तों परिवर्तन जीवन का नियम आज आधुनिक शिक्षा के दौर में मीडिया, व्हाट्सएप ,फेसबुक टि्वटर ना जाने कितने ऐसे माध्यम है जिनसे ना जाने कैसे-कैसे मैसेजेस आकर गांधीजी के चरित्र की कांति को धूमिल करने का कार्य कर रहे हैं ।दोस्तों हम मानव योनि में जन्मे हैं ईश्वर ने हमें संयम, बुद्धि ,विवेक जैसे गुण वरदान स्वरूप दिए हैं इसीलिए हमें सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। इस बात को सारा देश जानता है और युगों-युगों तक यह  कहा जाएगा कि गांधीजी ने लोगों को स्वदेशी चीजों को अपनाने और विदेशी चीजों का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया। हरिजनों के लिए उन्होंने बहुत काम किया देश की आजादी के लिए आंदोलन किए, जेल गए अंग्रेजों के अत्याचार सहे और भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में शुरू किया तथा देश की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने निरंतर सत्य और अहिंसा के बल पर आजादी पाने का संकल्प किया था। गांधीजी अहिंसा त्याग समर्पण की साक्षात मूर्ति थे। देश का पैसा किसी भी तरह अपने सुख और अपनी खुशी के लिए खर्च करना पसंद नहीं करते थे। एक बार की बात है उनके जन्मदिन पर आश्रम वासियों ने देसी देसी घी के दिए जलाकर उनका स्वागत किया ।गांधीजी ने पूछा-" आज यह दीए किस खुशी में जलाए जा रहे हैं? आश्रम वासियों ने कहा -"आज आपका जन्मदिन है", इतना सुनते ही गांधी जी का मन आक्रोश से भर गया और उन्होंने आश्रम वासियों से कहा-"आज देश के न जाने कितने लोग एक वक्त की रोटी के लिए तरह रहे हैं और तुमने कितना देसी घी व्यर्थ में जला दिया ।आज अगर जन्मदिन मनाना चाहते हो तो, एक जरूरतमंद व्यक्ति की एक दिन की जरूरत पूरी करने का संकल्प करो। 

गांधीजी ने बचपन से अपनी मां को सदैव धर्म और सत्य के मार्ग पर चलना चलते हुए देखा था ,झूठ बोलना पसंद नहीं था। एक बार विद्यालय में कुछ छात्रों ने शरारत की तो उनसे पूछा गया क्या तुम भी इसमें शामिल थे? गांधीजी ने विश्वास के साथ कहा-" मैंने कोई शरारत नहीं की ",मगर बच्चों की टोली के साथ अध्यापक में गांधीजी के हाथ पर भी छड़ी  मारी।

गांधीजी सिर झुकाए चुपचाप खड़े रहे। घर आकर खूब रोए। मां ने रोने का कारण पूछा तो सारी बात बताते हुए बोले-"मुझे इस बात का दुख नहीं की मुझे मास्टर जी ने मारा, मुझे इस बात का दुख है कि मेरा नाम झूठ बोलने वाले बच्चों में शामिल किया गया। ऐसा था गांधीजी का चरित्र, ऐसा था उनका चिंतन। उनके जीवन के बहुत से ऐसे प्रसंग हैं, जिन्हें युगों-युगों तक दोहराया जाएगा। गांधी एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा विश्व है। गांधी नाम अमर है, शाश्र्वत है।वे कल भी जगत की प्रेरणा थे और कल भी रहेंगे। अंतिम दोहे से अपनी वाणी को विराम देती हूं-

 

जगत भूल सकता नहीं, गांधीजी का नाम।

शब्द सुमन अर्पण करूं, सदा करूं प्रणाम।।

 

*सरिता गुप्ता,सी-764,एल आई जी फ्लैट्स,ईस्ट ऑफ लोनी रोड,शाहदरा,दिल्ली-93 मो.9811679001



 

 



 



 















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