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क्रांतिकारी चेतना के वाहक :श्रीकृष्ण सरल(लेख)






*डॉ.प्रीति प्रवीण खरे*
मनुष्य अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए शारीरिक सौन्दर्य और सजावट की ओर बहुत ध्यान देता है और समय तथा धन खर्च करता है।समय बीतने और आयु के बढ़ने के साथ ही यह सौन्दर्य, आकर्षण और विशेषता क्रमशः समाप्त हो जाती है।यदि मनुष्य आकर्षक व्यक्तित्व के लिए अपने चरित्र, चिंतन और व्यवहार को अनुकरणीय बनाता तो वह अपनी कीर्ति और यश के कारण अमर हो जाता है।
ऐसे ही एक अमर रचनाकार हैं जिनके लेखन में 'जनहित के भाव' समाहित हैं।किसी भी रचनाकार के अक्षर में बहुत शक्ति होती है।इस अस्त्र को थामने वालों को कभी भी ग़ैरज़िम्मेदार नहीं होना चाहिए।
एक प्रतिबद्ध सृजनधर्मी और क्रांतिकारी लेखन के द्वारा युगों-युगों तक जन मानस को झकझोरने वाले ओज रचनाकार हैं श्रीकृष्ण सरल।उन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में प्राणों की आहुति देने वाले देश के क्रांतिकारियों के बलिदानों की गौरवगाथा का गान लिख साहित्य जगत में अमर हुए हैं।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़े क्रांतिकारियों के योगदान के इतिहास को आमजन तक पहुँचाने हेतु श्रमसिद्ध ग्रंथ क्रांतिकारी कोश को श्रीकृष्ण सरल जी ने विश्लेषणात्मक शैली में लिखा।गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में आपने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है।
आपकी लिखी ओज कविताएँ पाठकों को आकर्षित करती हैं।आपकी कविताओं में देश प्रेम की भावना को जागृत करने की शक्ति और सामर्थ्य है।माँ शीर्षक कविता की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-
जब प्रभावती कोई सुभाष से बेटे को
भारत-माता की व्यथा-कथा बतलाती है,
हर साँस और हर धड़कन उस विद्रोही की
धरती की आज़ादी की बलि चढ़ जाती है।
माँ शीर्षक कविता के द्वारा आपने प्रत्येक भारत वासी के हृदय में आज़ादी के सुंदर स्वप्न को साकार करने का बीज मंत्र दिया है।
आज भारत देश की दशा और दिशा तय करने के लिए सही हाथों में देश की बागडोर होना परम आवश्यक है।सही व्यक्ति को चुनना हमारी महती ज़िम्मेदारी है।'नेतृत्व' शीर्षक कविता द्वारा सरल जी ने नेताओं पर व्यंग कसते हुए उनके कर्तव्यों से अवगत कराया है।पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-
'कील कुछ लोगों को हाँकें,
नेतृत्व न वहमापने समाज को दिशा-दान वह देता है,नेतृत्व न देता लच्छेदारी बातों को
निज आन-बान के लिए जान वह देता है।'
नेतृत्व करने वाले के हृदय में स्वयं के सुख-सुविधाओं के कोई स्थान नहीं होता है।देश की आन- बान- शान की ख़ातिर स्वयं देश के लिए सर्वस्व अर्पण करना ही सही नेतृत्व क्षमता है।
ये धरती माँ बहुत महान है,हम जीवन भर उनके ऋणी रहेंगे।जिन्होंने बिना कुछ उम्मीद के हमको अपने गोद में स्थान दिया।भारत की मिट्टी रत्नों से भी अनमोल है।इस मिट्टी में हम पैदा हुए,पले बढ़े और इसी ने हमको हमारी पहचान दी।इन्हीं भावनाओं से उत्पेरित 'धरा की माटी बहुत महान' शीर्षक की चंद पंक्तियों को मैं आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर रही हूँ-
'धरा की माटी में वरदान,धरा की माटी में सम्मान
धरा की माटी में आशीष,धरा की माटी में उत्थान।'
सरल जी की इस रचना में देश की मिट्टी के प्रति कृतज्ञता के भाव हैं।जो ये दर्शाते हैं कि हमारे जीवन का रोम-रोम इस मिट्टी का क़र्ज़दार है।
आज के परिवेश में अक्सर देखने-सुनने और पढ़ने को मिलता है कि अमुक व्यक्ति को सफलता नहीं मिली या किसी की उपेक्षा मात्र से दुखी होकर वो जीवन लीला समाप्त कर लेता है।ऐसे सभी लोगों को प्रेरित करती श्री कृष्ण सरल जी की 'जियो या मरो,वीर की तरह' शीर्षक की पंक्तियाँ याद आती हैं,
'वीरता जीवन का भूषण,वीर भोग्या है वसुंधरा
भीरुता जीवन का दूषण,भीरू जीवित भी मरा मरा
वीर बन उठो सदा ऊँचे,न नीचे बहो नीर की तरह,जियो या मरो,वीर की तरह।'
व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब वो कायरता छोड़कर वीरता का वरण करता है।
साधारण मनुष्य निद्रा जी अवस्था में स्वप्न देखता है।इसके ठीक विपरीत सरल जी वही स्वप्न खुली आँखों से देखते हैं,और उसे साकार करने के लिए लेखनी उठाते हैं।'देश के सपने फूलें फलें' शीर्षक की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-
'साधन के तप में हम तपें,देश के हित चिंतन में खपें
कर्म गंगा बाहती ही रहे,निरन्तर हिम जैसे हम गलें।'
उन्होंने सदैव स्वयं से ऊपर उठकर देश को रखा है।तभी तो वे सपने भी देश के कल्याण के,लोक के कल्याण के देखते हैं।अर्थात उनके मन मस्तिष्क में देश हित की भावना के अलावा दूसरे विचारों के लिए कोई जगह है ही नहीं।
श्री कृष्ण सरल जी उन विरले कवियों में शामिल हैं जिन्होंने अपनी लेखनी से देशवासियों के दिलों में राज किया है।उनकी भाषा सहजता से हृदय में उतरते हुए आपको गाने-गुनगुनाने के लिए विवश करती है।उनका शिल्प विन्यास बहुत सशक्त है।'आँसू' नामक कविता में उन्होंने जैसा बिम्ब विधान रचा है वो प्रस्तुत है-
'रोदन से,भारी मन हलका हो जाता है
रोदन में भी आनंद निराला होता है,
हर आँसू धोता है मन कि वेदना प्रखर
ताज़गी और वह हर्ष अनोखा बोता है।'
सरल जी ने आँसू नामक कविता के द्वारा सकारात्मक ऊर्जा का संचरण किया है।जब आँसू बहते हैं,उनमें हृदय की बूँद-बूँद वेदना भी धुल जाती है।मन ताज़गी से भर उठता है,इस क्षण एक अनोखे अहसास से मन हर्षित हो उठता है।आँसू जब कपोल पे लुढ़कते हुए बहते हैं,उस समय कवि की कल्पना विचार रूपी गहरे सागर में गोते लगाते हुए हिमगिरी तक पहुँच जाती है।तब उन्हें वो आँसू हिमगिरि से बहते गंगाजल सदृश प्रतीत होते हैं।
श्री सरल जी के साहित्य में युग की शक्तिशाली सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों के स्वर विद्यमान हैं।शौर्य,पराक्रम,त्याग एवं बलिदान के स्वरों को पिरोकर उन्होंने 'शहीद' कविता का सृजन किया।प्रस्तुत हैं पंक्तियाँ-
'देते प्राणों का दान देश के हित शहीद
पूजा की सच्ची विधि वे ही अपनाते
हम पूजा के हित थाल सजाते फूलों का
वे अपने हाथों,अपने शीष चढ़ाते हैं।'
विशाल काया पाकर भी यदि हम अपने देश और समाज के काम न आ सके तो हमारा जीवन व्यर्थ है।इस कविता को पढ़कर मेरे हृदय में स्वतः ही उन शहीदों के प्रति श्रद्धा,आदर के भाव जाग्रत हुए।मैं उन सभी वीरों के अतुलनीय बलिदान की ऋणी रहूँगी,जिन्होंने अपने लहू की आख़िरी बूँद को भी देश के ख़ातिर समर्पित कर दिया।उनकी पुण्य स्मृति के आगे हर भारत वासी नतमस्तक हैं।निम्न पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-
'यह राह नहीं फूलों की,काँटें भी इस पर मिलते हैं।
ले करके दरद जमाने का,बस,हिम्मत वाले चलते हैं।।'
भारतीय परंपरा में सदा से क्रांति का प्रतीक ऐसे व्यक्तित्वों को माना गया,जिनके भीतर संवेदना और साहस,विवेक एवं वेदना,पवित्रता एवं प्रखरता साथ-साथ,सघनता के साथ उपस्थित हों।जिनके हृदय में भाव छलकता जानते हों और जिनकी सोच में साहस मचलता जानते हों,ऐसे व्यक्तित्वों के आँसू भी अंगारे बन जाते हैं और ऐसे व्यक्तित्व ही क्रांतिदूत कहलाते हैं।भारत भूमि की धरती में जन्म लेकर श्रीकृष्ण सरल जैसे साहित्य के क्रांतिदूत
ने अपने प्रखर लेखन से चित्त परिशोधन द्वारा संपूर्ण जन मानस में देश प्रेम की क्रांतिकारी चेतना का संचार किया है।क्रांतिकारी चेतना के वाहक श्रीकृष्ण सरल जी की चिर स्मृति को शत- शत वंदन....!

*डॉ.प्रीति प्रवीण खरे,19,सुरुचि नगर,कोटरासुल्तानाबाद,भोपाल म.प्र,पिन-452003
मो.-9424014719, ईमेल-Preetipraveenauthor@gmail.com
 






 



 















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