*डॉ ब्रजेश मिश्र*
कौन यह मुझमे मुखर हो,
पूछता है आज फिर-फिर!
क्या हुए वे स्वप्न स्वर्णिम,
सजे थे जो उर-निलय में?
क्या हुए वे भग्न, करुणिम-
आह भर खंडित ह्रदय में?
क्या मिले संताप दुर्दम?
बूझता है आज फिर -फिर!
पूछता है आज फिर-फिर!
क्या हुई मृदु कामनाएँ,
चिर सँजोई आस उर मे?
क्या हुई वह कल्पनायें,
मृदुल-मधुरिम भाव उर में?
क्या दुसह थी वंचनाएँ?
बूझता है आज फिर-फिर!
पूछता है आज फिर-फिर!
क्या हुई प्रतिबद्धताएँ,
सद-सुभग संकल्प उर के?
क्या हुई वो मान्यताएँ,
मूल्य औ' आदर्श उर के?
क्या हुईं सद्भावनाएँ?
बूझता है आज फिर-फिर!
पूछता है आज फिर-फिर!
व्यथितमन मैं सोचता हूँ,
सार्थक यह प्रश्न सारे।
सतत उत्तर खोजता हूँ,
पर अबूझे प्रश्न सारे ।
दुखित हर उर ,जानता हूँ,
बूछता हल आज फिर-फिर!
पूछता है आज फिर-फिर !
*डॉ ब्रजेश मिश्र, मुजफ्फरनगर
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